शनिवार, 30 अप्रैल 2011

जीवन का मर्म

लोगों को आते देखा
लोगों को जाते देखा
मौत का अहसास ना था
कल तक सबके साथ  था
आज सबसे दूर है
खुद मौत के आगोश में है
कल तक वो  बोलता 
सब  सुनते
विचारों से उद्वेलित
करता
हर तर्क जवाब देता
हंसता, हंसाता
आज सब बोल रहे
कुछ रो रहे
कुछ दिखावा कर रहे
मन ही मन खुश हो रहे
वो निरंतर सुन रहा
चुपचाप बेबस लेटा
चुपचाप सब देख रहा
ना हंस सकता
ना रो सकता
कुछ कहना चाहता
कह ना पाता
खामोशी से शरीर के
हर नामोनिशान  को
मिटते देख रहा
जीवन का मर्म
समझ रहा
30-04-2011
790-210-04-11

4 टिप्पणियाँ:

Vaanbhatt ने कहा…

ये मर्म जितनी जल्दी समझ आ जाये उतना भला...

तेजवानी गिरधर ने कहा…

ये मर्म समझ में आ जाना, साथ ही उसी समझ में जीना ही ईश्वर को पा जाना है

Anita ने कहा…

जीवन की यही सच्चाई है !

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

यही सच है, लोग जानते हैं, फिर भी अंजान हैं।

Add to Google Reader or Homepage

 
Design by Free WordPress Themes | Bloggerized by Lasantha - Premium Blogger Themes | cna certification