लोगों को आते देखा
लोगों को जाते देखा
मौत का अहसास ना था
कल तक सबके साथ था
आज सबसे दूर है
खुद मौत के आगोश में है
कल तक वो बोलता
सब सुनते
विचारों से उद्वेलित
करता
हर तर्क जवाब देता
हंसता, हंसाता
आज सब बोल रहे
कुछ रो रहे
कुछ दिखावा कर रहे
मन ही मन खुश हो रहे
वो निरंतर सुन रहा
चुपचाप बेबस लेटा
चुपचाप सब देख रहा
ना हंस सकता
ना रो सकता
कुछ कहना चाहता
कह ना पाता
खामोशी से शरीर के
हर नामोनिशान को
मिटते देख रहा
जीवन का मर्म
समझ रहा
30-04-2011
790-210-04-11
4 टिप्पणियाँ:
ये मर्म जितनी जल्दी समझ आ जाये उतना भला...
ये मर्म समझ में आ जाना, साथ ही उसी समझ में जीना ही ईश्वर को पा जाना है
जीवन की यही सच्चाई है !
यही सच है, लोग जानते हैं, फिर भी अंजान हैं।
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