पिताजी
बचपन में कहते थे
लोगों से मिला करो
हाल चाल जाना करो
अपनों को याद करा करो
चिठ्ठी पत्री लिखा करो
हाल अपना बताया करो
अच्छा साहित्य पढ़ा करो
मन को स्वस्थ रखा करो
छोटों को प्यार करा करो
बड़ों का सम्मान दिया करो
केवल अपना ना सोचा करो
चिंता सब की करा करो
शर्म लिहाज रखा करो
अब बच्चों से सुनता हूँ
मतलब हो तो मिला करो
चैटिंग से बात करा करो
एस ऍम एस भेज
काम चलाया करो
फेस बुक पर
हाल चाल बताया करो
इंटरनैट पर पढ़ लिया करो
उम्र की ना सोचा करो
छोटों,बड़ों को
बराबर समझा करो
जानो नहीं तो
बात भी ना करा करो
परवाह किसी की मत करो
निरंतर अपनी सोचा करो
खुल्लम खुल्ला प्यार करो
शर्म लिहाज को ताक़
में रखो
04-04--11
592—25 -04-11
2 टिप्पणियाँ:
satya vachan....sargarbhit
bhut sahi kaha apne... bhut khub....
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