गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

अब जब नहीं हो तुम मेरे पास.....

अब जब नहीं हो तुम मेरे पास,

अब जब नहीं हो तुम मेरे पास,
नहीं लिखता हूँ कोई गीत,
तुम्हारे न होने पर....
नहीं आती है,अब तुम्हारी याद...
नहीं होता है अब ये मन,
तुम्हारी याद में उदास.
अब जब नहीं हो तुम मेरे पास......

कुछ शब्द चुपके से आते हैं.,
विस्मृत स्मृतियों पर,
धीरे से दस्तक दे जातें हैं..
अब नहीं पिरो पाता हूँ, इनको अपनी कविता में..
अब नहीं दे पाता हूँ ,इन शब्दों को अपनी आवाज..
अब जब नहीं हो तुम मेरे पास....................

अब जब नहीं हो तुम मेरे पास..
यूँ ही बीत जातें हैं ये दिन,
बरसों हो गए, रूकती नहीं है,
कभी ये काली स्याह रात ...
अब जब नहीं हो तुम मेरे पास.......

अनजान रास्तों पर, यूँ ही निकल पड़ता हूँ.
कभी गिरता हूँ कभी संभालता हूँ...
अनजाने में महसूस करता हूँ,
कुछ पल के लिये तुम्हारा साथ..
ये जानते हुए भी की मेरे हाथों में,
अब नहीं है तुम्हारा हाथ...
अब जब नहीं हो तुम मेरे पास..........

ये आँसू अब कभी नहीं बहते हैं,
मन की पीड़ा सबसे नहीं कहतें हैं,.
अगली बार जब तुम मिले,
तो हर लम्हा आँखों मे समेट लेंगे
इसी प्रत्याशा में पलकों पे रुके रहते हैं .....

ये आँसू ...
अब नहीं करातें हैं,
तुम्हारे दूर जाने का एहसास...
अब जब नहीं हो तुम मेरे पास......

13 टिप्पणियाँ:

mahtab ने कहा…

अल्लाहताला के रहमोकरम से इस्लाम में इतनी कूबत है की आशुतोष जैसे काफिरों की इस्लाम को नापाक कहने वाले ब्लॉग को बंद करा दे..सभी मुश्लिम भाई आ जाओ इस्लाम की हिफाजत करें और इस काफ़िर को सबक सिखाएं..

हिंदी कविता-कुछ अनकही कुछ विस्मृत स्मृतियाँ /Ashutosh Nath Tiwari: जेहाद

आशुतोष की कलम से....: भारतीय मुसलमान,इस्लाम और आतंकवाद..

shyam gupta ने कहा…

इतना कमजोर है इस्लाम...जिसकी हिफ़ाज़त इन्सान करेगा.....तो अल्लाह फ़िर क्या करेगा....

shyam gupta ने कहा…

---सुन्दर कविता...

विभूति" ने कहा…

ये आँसू ...
अब नहीं करातें हैं,
तुम्हारे दूर जाने का एहसास...
अब जब नहीं हो तुम मेरे पास......bhut bhut hi khubsurat rachna....

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही सुन्दर शब्दों का सयोंजन , दिल को छू लेने वाली लाजवाब रचना के लिए बधाई .

मदन शर्मा ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
मदन शर्मा ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
मदन शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता !

हल्ला बोल ने कहा…

सावधान हो जाइये एक और बाबरी मस्जिद खड़ी हो गयी अलीगढ से. महताब के नाम से,, आशुतोष जी डर जाईये क्योंकि आप ही अकेले काफ़िर दिखाई दे रहे हैं. बाकि लोग तो कलमा पढ़कर शांत हैं, होता है भाई कायरता में भी शांति होती है, महताब भाई कम से कम आपमें ललकारने की हिम्मत तो है. यहाँ तो अधिकतर लोग खिड़की के पीछे छुपकर तमाशा देखते हैं. अच्छी रचना /

गंगाधर ने कहा…

इतना कमजोर है इस्लाम...जिसकी हिफ़ाज़त इन्सान करेगा.....तो अल्लाह फ़िर क्या करेगा....

गंगाधर ने कहा…

sundar kavita...........

आशुतोष की कलम ने कहा…

कविता को पसंद करने के लिए आप सभी जानो का बहुत बहुत आभार

महताब बंधू ..
आप की प्रोफाइल तस्वीर अत्यंत सुन्दर है..९२ तक अयोध्या में थी..बाद में हमने सोचा इसे अपने दिल में रख लें ..में भी दिल में ही रखता हूँ इसलिए सोचा दिल के बाहर अयोध्या में इस तस्वीर का क्या औचित्य ...
मेरा एक लेख है ..
कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी.......शीर्षक से पढ़ लें..
और रही बाद आशुतोष के ब्लॉग को बंद करने की तो करा दो श्रीमान...मैं भी आप के साथ हूँ और भी कोई कीमत चाहिए तो बोलो मिल जाएगी मगर बस ये हिन्दुस्थान छोड़कर चले जाओ अपने पिताश्री लोगों के घर में पाकिस्तान..
कैसा रहेगा ये आदान प्रदान ....

shyam gupta ने कहा…

हर सबाल का जबाव,हर समस्या का निदान,
सुन्दर रहेगा जी यह आदान -प्रदान ॥

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