प्रेम काव्य-महाकाव्य--गीति विधा -- रचयिता---डा श्याम गुप्त
-- प्रेम के विभिन्न भाव होते हैं , प्रेम को किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत सुमनांजलि- प्रेम भाव को ९ रचनाओं द्वारा वर्णित किया गया है जो-प्यार, मैं शाश्वत हूँ, प्रेम समर्पण, चुपके चुपके आये, मधुमास रहे, चंचल मन, मैं पंछी आजाद गगन का, प्रेम-अगीत व प्रेम-गली शीर्षक से हैं |---प्रस्तुत है प्रेम का एक और भाव ... षष्ठ रचना -- चन्चल मन है ...
तुम कहते हो याद नहीं करना,
कोई फ़रियाद नही करना ।
अपनी इन प्यारी बातों का,
कोइ अनुवाद नहीं करना ||
मैं चाहूँ याद सदा आना,
इस मन में यूंही मुस्काना |
यादें ही मेरा मधुवन हैं,
ये मन मेरा चंचल मन है ||
तुमको कैसे विस्मृत करदूं ,
सुस्मृति को कैसे मृत करदूं |
जड़ शुष्क नहीं एकाकी मन,
यह चेतन है, मेरा मन है |
स्मृतियाँ तो मन की लहरें हैं,
फिर फिर दस्तक देदेती हैं |
कैसे यह मन चुप रह जाए,
आखिर मेरा चंचल मन है ||
मन चंचल है, मन पागल है,
पंछी जैसा, उड़ता जाए |
फ़रियाद भला कैसे न करे,
यह मन तेरा ही तो मन है ||
तुम याद सदा आते रहना,
इस मन को महकाते रहना |
स्मृतियों का यह उपवन है ,
मेरा मन है चंचल मन है ||
अब इन सब प्यारी बातों का,
कोइ प्रतिवाद नहीं करना |
हैं यादें प्यार सजा बंधन,
आखिर मन है,चंचल मन है |
तुम कहते, याद नहीं करना ,
कोइ फ़रियाद नहीं करना |
पर अब इन सारी बातों का,
कोइ परिवाद नहीं करना ||
जीवन यादों का मंथन है,
चेतन मन है चंचल मन है |
स्मृतियों का पावन उपवन है,
ये मन तेरा ही तो मन है ||
2 टिप्पणियाँ:
तुमको कैसे विस्मृत करदूं ,
सुस्मृति को कैसे मृत करदूं |
जड़ शुष्क नहीं एकाकी मन,
यह चेतन है, मेरा मन है |
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अति सुन्दर ..
आप की कवितायेँ पढ़कर फिर से प्रेम रस में लिखने की इच्छा जागृत हो गयी..
तो लिखिये---सब कुछ करने की प्रेरणा देता है प्रेम...गोपियों का कथन है..."पेम पुमर्थो महान" ..
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