बच्चो! पटरी पर ही चलना,
बीच सडक पर नहीं निकलना ।
दायें और निकलकर जाना ||बीच सडक पर नहीं निकलना ।
सड़क पार करना यदि चाहो,
बाएं देखो, दायें देखो ||
अगर न कोइ वाहन आता,
धीरे धीरे चलकर जाना |
कभी न सीधे और अचानक,
पार सड़क के दौड़ कर आना ||
चौराहे को पार है करना,
पैदल-पथ तक चलकर आओ |
श्वेत-श्याम पट्टियों से बने,
ज़ेब्रा-क्रोसिन्ग पर से जाओ ||
साइकिल लेकर निकल रहे हो,
वायीं-ओर सड़क पर चलना |
आगे-पीछे सदा देखकर,
दे संकेत हाथ से मुड़ना ||
स्कूटर यदि सीख लिया है,
इंडीकेटर देकर मुड़ना |
उचित चाल से उसी लेन में,
सीधे सीधे आगे बढ़ना ||
आगे वाले वाहन से यदि,
हो जब तुमको आगे आना |
देकर हार्न सचेत करो, फ़िर-
चौराहे पर पहुँचो तो फिर,
रखो सदा सिग्नल का ध्यान ।
लाल हरे पीले सिग्नल और,
यातायात नियम का ग्यान ॥
सिग्नल लाल हो रुकना होगा,
पीले पर तैयार रहो तुम ।
हरा रहे तो आगे बढना ,
ध्यान दिशा-संकेत का रखना ॥
इसी तरह से सदा सुरक्षित,
रहकर वाहन, सभी चलायें ।
हो न असुविधा औरों को भी,
हम भी खुशी खुशी घर आयें ॥
4 टिप्पणियाँ:
आप ने इस छोटी कविता के माध्यम से बच्चो को सड़क के नियम भी बता दिए सुंदर रचना
डॉ. आप जब कविता या ग़ज़ल कि रचना करते है तो उसमे यह सुन्दर बात है कि आपकी रचना में हमेशा एक सन्देश होता है. ऐसी रचनाओ को बच्चो के कोर्स में डाले जाने chahiye..
मैं माफ़ी चाहूँगा डॉ .साहेब ...... ख़ुशी के अतिरेक में मैंने सिर्फ डॉ. लिख दिया क्षमा.
---यदि कविता में संदेश न हो तो साहित्य कैसा...साहित्य= सा हिताय य:
---अतिरेक में द्वैत-भाव कहां रहता है....
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