रविवार, 13 मार्च 2011

सापों की संख्या दिन रात बढ़ती रहती,स्रष्टि अनवरत चलती रहती



420—90-03-11

बरामदे मैं बैठा
किताब पढ़ रहा था
जोर से चिड़िया के
चहचहाने की आवाज़ ने
ध्यान बरामदे के कोने
की ओर आकर्षित किया
उठ कर देखा कोने में
बिजली के मीटर के पास
चिड़िया घोंसले में
सहमी हुयी बैठी थी
मुझे देख चुप हुयी
कातर दृष्टी से देखने लगी
सामने दीवार पर एक सांप
चिड़िया को निवाला
बनाने की तैयारी में जुटा,
लपलपाती दृष्टी गढ़ाए बैठा था
मैंने कोने में पडी लकड़ी
उठायी
सांप को भगाया
तभी एक मित्र का
आना हुआ
उसने वहाँ खड़े होने का
कारण पूंछा
सारा वाकया उसे बताया
वो हंस कर कहने लगा
निरंतर
कई सांप दुनिया में घूमते
अबलाओं पर गिद्ध सी
दृष्टी रखते
कब निवाला उन्हें  बनाए
मौक़ा ढूंढते
कितनी अबलाएँ
इन सापों के चुंगुल में
फंसती,
छटपटाती,चिल्लाती
किसी को उनकी आवाज़
सुनायी नहीं देती
कुछ अस्मत खोती
कुछ जान से हाथ धोती
चिड़िया सी भाग्यशाली
बहुत कम होती
फिर भी किसी कान पर जूँ
नहीं रेंगती
जनता मूक दृष्टी से
देखती रहती
सरकार सोती रहती
सापों की संख्या
दिन रात बढ़ती रहती
स्रष्टि अनवरत चलती
रहती
13—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

7 टिप्पणियाँ:

Kunal Verma ने कहा…

शत प्रतिशत सहमत। आभार।

devendra gautam ने कहा…

yahi sach hai

kirti hegde ने कहा…

swagat...achchhi kaviata.

गंगाधर ने कहा…

आपकी रोजाना उपस्थिति के लिए आभार

Unknown ने कहा…

निरंतर कई सांप दुनिया में घूमते
अबलाओं पर गिद्ध सी
दृष्टी रखते
कब निवाला बनाए
मौक़ा ढूंढते
कितनी अबलाएँ
इन सापों के चुंगुल में फंसती,
छटपटाती,चिल्लाती
किसी को उनकी
आवाज़ सुनायी नहीं देती
.....
वाह.. बहुत ही सधे हुए शब्दों में आपने सत्य को सामने रख दिया है..
गंभीर सत्य..

rubi sinha ने कहा…

आपने सत्य को सामने रख दिया है.

हरीश सिंह ने कहा…

निरंतर जी, एक भावपूर्ण कविता के लिय बधाई. स्वागत.

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