मंगलवार, 15 मार्च 2011

सपने में भी रोकती है बेटियाँ....!!

सपने में भी रोकती है बेटियाँ....!!

एक बिटिया दस वर्ष की हो गयी है मेरी 
और दूसरी भी पांच के करीब....
कभी-कभी तो सपने में ब्याह देता हूँ उन्हें 
और सपने में ही जब 
जाता हूँ अपनी किसी भी बेटी के घर....
तो मेरे सीने से कसकर लिपट कर 
खूब-खूब-खूब रोती हैं बेटियाँ....
मुझसे करती हैं वो 
खूब-खूब-खूब सारी बातें....
अपने घर के बारे में 
माँ के बारे में और 
मोहल्ले के बारे में...
और तो और कभी-कभी तो 
ऐसी-ऐसी बातें पूछ डालती हैं 
कि छलछला जाती हैं अनायास ही आँखे 
और जीभ चुप हो जाती है बेचारी...
पता नहीं कितने तो प्यार से 
और पता नहीं कितना तो..... 
खाना खिलाये जाती हैं वो मुझे....
और जब चलने लगता हूँ मैं 
वापस उनके यहाँ से....
तो एक बार फिर-फिर से...
खूब-खूब-खूब रोने लगती हैं बेटियाँ 
कहती हैं पापा रुक जाओ ना....
थोड़ी देर और रुक जाते ना पापा....
कुछ दिन रुक जाते ना पापा....
पापा रुक जाओ ना प्लीज़...
हालांकि जानती हैं हैं वो 
कि नहीं रुक सकते हैं पापा.....
मगर उनकी आँखे रोये चली जाती हैं....
और पापा की आँख सपने से खुल जाती है....
देखता हूँ....बगल में सोयी हुई बेटियों को....
छलछला जाता हूँ भीतर कहीं गहरे तक...
चूम लेता हूँ उनका मस्तक....
देखता हूँ....सोचता हूँ...बहता हूँ....
कि उफ़ कितनी गहरी जान हैं मेरी बेटियाँ....!!!

6 टिप्पणियाँ:

-सर्जना शर्मा- ने कहा…

राजीव जी बेटियों के भविष्य की चिंता आपके चेतन अवचेतन मन में हैं ये कविता तो यही कहती है बेटियों के प्रति अपार स्नेह हर पिता का होता है आपका भी है

शेखचिल्ली का बाप ने कहा…

...
***
Nice post.
बुरा न मानो होली है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत भावुक कर देने वाली रचना ..बेटियाँ ऐसी ही होती हैं ..

Nirantar ने कहा…

nice one

हरीश सिंह ने कहा…

उफ़ कितनी गहरी जान हैं मेरी बेटियाँ
राजीव जी क्या इस पोस्ट पर भी टिप्पणी की जा सकती है. शायद कोई शब्द ही नहीं है. मैं दोपहर को इस पोस्ट को पढ़ा था बिना टिप्पणी किये चला गया मुझे शब्द ही नहीं सूझ रहे थे. एक बाप के दिल में अपनी बेटी के लिए क्या भावनाए होती हैं. वह शायद वही महसूस कर सकता है जिसे बेटियां हो, यह कविता आपकी कल्पना है या हकीकत मैं नहीं कह सकता परन्तु मेरी हकीकत है यह., मुझे लगा आपने मेरे मन के भावों को व्यक्त कर दिया है.
आज हमारे समाज में कन्या भ्रूण हत्या जैसी बाते उठती रहती है. लोग इस बात का रोना रोते है की लडकिया कम पड़ रही है लड़के कुवांरे रह जायेंगे. " लडकियों की घटती संख्या चिंताजनक " जैसी बाते लिखी जाती है, बड़े-बड़े साहित्यकार, लेखक इस पर चिंता जताते रहते है. सच तो यह है पुरुष समाज सिर्फ अपनी चिंता करता है, लड़कियों के बारे में कभी किसी सोचा नहीं, महिलाये आज भी उपेक्षित है. जब हम उन्हें कोई जिम्मेदारी सौंपते है है तो कहते है की "लो तुम्हे सम्मान दे दिया" एहसान जताते हैं. जैसे वो सम्मान के लायक थी ही नहीं, सम्मान भी देते है और एहसास भी कराते है. तुम कितनी भी आगे निकल जाओ पर रहोगी हमारे पीछे ही. लडकिया कम हो रही है पर दहेज़ बढ़ता ही जा रहा है. जिनके पास लडकिया है वो परेशान है की इनकी शादी कैसे करेंगे. जबकि लडको के बारे में कोई नहीं सोचता, वो जानते है की चलो लड़का ही तो है कोई न कोई अपनी बकरी {लड़की} लेकर आएगा, हलाल कर लेंगे, लड़के पांच पैदा कर लिए पर कोई चिंता नहीं लडकिया पांच हो गयी समाज भी कहता है " कैसे बेवकूफ हो भाई, महगाई का भी ख्याल नहीं रखा, आज के माडर्न ज़माने में इतनी बड़ी बेवकूफी, क्या बात है पर. आपकी पोस्ट मैं पढ़ी तो सोचने लगा क्या कोई बाप या माँ अपने अजन्मे बच्चे को यूँ ही मौत के घाट उतार देते है, नहीं इसके पीछे हमारी पुरुष मानसिकता ही है. हाथ की पांचो अंगुलिया छोटी बड़ी हो सकती है पर कटे कोई भी दर्द तो बराबर होगा न.
मैं अपनी ही बात करता हूँ. मेरी तीन बेटियां हैं, दो बेटे है. पांच बच्चे है न बेवकूफी भरी बात, मैं पढ़ा लिखा होकर भी पांच बच्चे पैदा कर लिए. मैं पत्रकार हूँ समाज को आईना दिखाता हूँ. और मैं खुद इतना बड़ा बेवकूफ कैसे हो गया. आप लोग भी हंस रहे होंगे न. सही बात है. मैंने हंसने का कम ही किया है. आखिर नसबंदी क्यों नहीं कराया, अबार्सन क्यों नहीं कराया, और मेरा तो फ्री में जुगाड़ हो जाता भाई मैं पत्रकार हूँ. कौन डॉ. पैसे लेता..... वैसे भी तो अधिकतर पत्रकार रौब गांठकर ही काम चलाते है मैं भी चला लेता.
सच बात तो यह है की अपनी बेवकूफी पर मुझे कोई पछतावा नहीं है. क्यों नहीं है बता दे. क्योंकि उनके चेहरे जब देखता हूँ तो सोचता हूँ आखिर इनमे से कौन नहीं होती... तो मैं खुश रहता और आज तक यह फैसला नहीं कर पाया... मैं यह मानता हूँ की मेरे जरिये जिसे ईश्वर ने, खुदा ने इस मृत्युलोक में साँस लेने भेजा था वह आज मेरे बच्चे के रूप में मेरे सामने है. सब के प्रति मेरे दिल में वही भाव है, जो आपने इस कविता में व्यक्त किया है. मैं यह कभी नहीं सोचता की उनकी शादी कैसे होगी, मैं सिर्फ यह सोचता हूँ की उन्हें पढ़ा लिखाकर उनके पैरो पर खड़ा कर दू. ईश्वर ने रिश्ते बनाये ही होंगे. जब उसे हम पालनहार मानते है तो व्यर्थ क्यों सोंचे वह जो भी करेगा अच्छा ही करेगा. एक स्नेहपूर्ण, भावपूर्ण पोस्ट के लिए बधाई. कविता पढ़कर दिल भर गया.

गंगाधर ने कहा…

एक स्नेहपूर्ण, भावपूर्ण पोस्ट के लिए बधाई. कविता पढ़कर दिल भर गया.

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