विज्ञान प्रगति व इंसानियत .. क्या कहें कैसी है हालत यारो ज़माने की। उन्नति कहेंअवनति कहें यारो ज़माने की। कहते तो है वे इसे दौरे प्रगति-विग्यान का, हमको लगती लूट प्रक्रिति के खज़ाने की । दूर बहुत दूर आसमां मे तो झांक लिया, खबर कब रख पाये अपने आशियाने की । . गन्दगी कूडा करकट बज़बज़ाती नालियों के, अम्बार लगे हैं किसे है चिन्ता हटाने की । लूट अनाचार कामचोरी के साये गहरे, किसकी चाहत है भ्रष्टाचार को हटाने की। भाव आचरण कर्म चिन्तन सब विदेशी होगये, किसको चिन्ता शुचि स्वदेशी आचरण सजाने की । सुख के साधन ही हैं सब कुछ तो प्रगति ही मानिये, इन्सानियत मिट जाय तो अवनति जमाने की। श्याम मतलब प्रगति और विग्यान झुठलाना नहीं, है जरूरत शुचि स्वदेशी आचरण आज़माने की ॥ |
8 टिप्पणियाँ:
भाव आचरण कर्म चिन्तन सब विदेशी होगये,
किसको चिन्ता शुचि स्वदेशी आचरण सजाने की ।
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आधुनिकता के दौर में हम स्वदेशी को छोड़कर पाश्चात्य सभ्यता अपना रहे है, वास्तव में अवनति का कारण यही है.
वाह री वक़्त की रफ़्तार
सत्य बचन ...हरीश जी...
धन्यवाद ओम कश्यप....सुन्दर है वक्त की रफ़्तार....है जरूरत शुचि स्वदेशी आचरण आज़माने की ॥
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किसकी चाहत है भ्रष्टाचार हटाने की..बहुत सही कटाक्ष...
धन्यवाद शालिनी जी...होसला अफ़ज़ाई के लिये....
एक प्रकार से उन्नत भी हुयी हें और अवनत भी अब आप इसे क्या कहेंगे हा भ्रष्टाचार जरुर बढ़ा है
धन्यवाद सौरभ जी...
”इन्सानियत मिट जाय तो अवनति जमाने की।”
---इतिहास गवाह है कि --अति-उन्नत सभ्यताये(पर इन्सानियत में अवनत ) सदा ही कम उन्नत सभ्यताओं( पर इन्सानियत/नैतिक में उन्नत--चाहे भौतिक सुविधाओं में कम हों )से सदा हारी हैं....चाहे रावण हो या कन्स...अन्ग्रेज़ हों या जर्मन या अमेरिका....
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