शनिवार, 9 जुलाई 2011

हिंदू कौन , हिंदू की क्या पहिचान हैं

हम कैसे हिंदू हैं, कैसे गर्व करें.

     

आज मेरे घर के सामने एक पडोसी  के यहाँ श्री रामचरित मानस का अखंड पाठ रखा गया. 


बड़े लोग थे सो बड़े बड़े लोग पाठ में आये, और किताब खोल कर बैठ गए . 


पुजारी जी को क्या सूझा , उन्होंने सबसे उच्च स्वर में पाठ करने को कहा,  बहुतों ने एकदम शुरू कर दिया, उनको साधुवाद है . 


पर , अफ़सोस है कि अधिक्तर सही उच्चारण नहीं कर पा रहे थे ,


में उन्हें जानता हूं, बड़ी  बड़ी  हिंदू सभा सोसाइटीओं के पदाधिकारी हैं . पढ़ें लिखे हैं . पर उच्चारण नहीं कर पा रहे हैं,  समझना तो बड़ी  दूर की बात है . 


आखिर हिंदू होने के मायने क्या हैं. ! 


हिंदू परिवार में जन्म ले लेना , हिंदू नाम होना , बस ...........


में जानता हूं , आप भी जानते होंगे आपके आस पास . रामायण की एक चोपाई नहीं आती, गायत्री मंत्र नहीं आता, शिखा-सूत्र , तिलक कि तो बात ही मत करो, 


राम जन्मभूमि कि बात आते ही उनके विचार बाहर आने लगते हैं.  फालतू की लराई है , वहाँ तो अस्पताल बनाना चैहिये , मस्जिद भी बन जाये तो क्या फर्क परता है , 


कोन जाने राम हुए भी थे या नहीं , और वहीँ हुए थे इसकी क्या गारंटी है , 


और भी क्या क्या ............


मिशनरी स्कूलों में पढ़ए हैं , बच्चे भी उन्हीं में पढ़ रहे हैं . 


क्या इन्ही हिंदुओं पर हमें गर्व है , क्या ये हिंदू हैं.  इनसे क्या आशा रखें. 


इनका क्या करें. 

       

12 टिप्पणियाँ:

Shalini kaushik ने कहा…

bahut sahi kaha hai aapne aaj aise logon ki sankhya bahut adhik hai jo dharm ka dikhava adhik karte hain uski shikshaon ka palan kam.

Dr. Yogendra Pal ने कहा…

कौन जाने राम हुए भी थे या नहीं?

"आप अच्छे हिंदू हैं" कम से कम वो लोग श्रद्धा से पूजा तो कर रहे हैं पर आप ये सवाल उठा कर क्या साबित करना चाहते हैं?

पूजा के लिए तो भाव चाहिए,

मरा-मरा रटते रटते अग्निशर्मा वाल्मिकी हो गया था,

कृपया ऐसे लेख लिखने से पहले दस बार सोच लिया करें

Unknown ने कहा…

pehle hum insaan hain...koi bhi dhram mein yeh nahin sikhaya jata.ki lines,shlok,dohe kandhsat hone chahiye....aatein toh achchi baat hai...hum se dharm hai..dharm se hum nahin ...is desh ka dukh yahi hain...kabhi dharm ke naam par...jati ke naam par...rajay ke naam par...hinsa hoti aayee hai...aur iss mein marta aam aadmi hai....jab logoin mein insaniyat hi nahin toh aise dharm ka kya phayda.... ISHWAR bhaw -bhakti chahiye...dharm ke naam par hinsa aur aapki yaddasht-uchcharan nahin....

अंकित कुमार पाण्डेय ने कहा…

कभी किसी और धर्म के प्रति ऐसे शब्द बोलने की हिम्मत हुई है ?? कभी ये कहा है तुमने की पता नहीं पैगम्बर हुए हैं या नहीं या पता नहीं "पैगम्बर के पास पंखों वाला घोडा था या नहीं " हिन्दू शांत स्वाभाव का है तो हिंदुत्व को गालियाँ देकर कद और पद बटोरने की आदत है | और जहाँ तक अयोध्याया में मंदिर न बनाने की बात है तो तुमने अपने घर में कितनी डिस्पेंसरी खुलवाई है ??

अयोध्याया में तो मंदिर ही बनेगा पर तुम्हारे घर में जरुर मल्ले कब्ज़ा कर लेंगे , 1947 में सबसे पहले शर्मनिरपेक्ष ही काटे गए थे , UP के कुछ गावों में संविधान की जगह शरीयत का शासन चलने लगा है वहां भी सिक-उल-अर ही काटे जाते हैं | सच्चे हिन्दू की परिभाषा किसी को भी तुम्हारे जैसे इस्लामिक दलाल से सीखने की अवश्यकत नहीं है |

आशुतोष की कलम ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
भारतीय ब्लॉग लेखक मंच ने कहा…

हमें सिर्फ इस बात पर एतराज़ है की अशोक गुप्ता ने ऐसी पोस्ट यहाँ पर लगायी. इन मुद्दों के लिए हल्ला बोल जैसे मंच काफी है और यह पोस्ट वहा भी प्रकाशित है.
और इससे अधिक शिकायत अंकित जी से है. आपकी सोच को हम नमन करते हैं. देशभक्ति का जो जज्बा आपके अन्दर है. और साथ अपने धर्म के प्रति जो समर्पण है. उसे भी हम प्रणाम करते हैं. पर हमारे संस्कार हमें असभ्य होने की संज्ञा नहीं देते. पर ऐसी सोच आप में मैं देखता हूँ. जरा सोचिये "सुव्यवस्था सुधार मंच" के माध्यम से आप एक सुलझे हुए सभ्य समाज की स्थापना की बात करते है. पर जब स्वयं आपका खुद पर ही नियंत्रण नहीं है तो आप व्यवस्था का सुधार कैसे करेंगे. जिन शब्दों का प्रयोग आपने किये है वह कहा तक उचित है.
अशोक गुप्ता जी, हमारे इस परिवार के ५६ वर्षीय एक बुजुर्ग सदस्य हैं. वे धर्म के प्रति जागरूक व्यक्ति भी है. फर्क इतना है की कट्टर हिन्दू नहीं बल्कि निष्ठावान हिन्दू हैं. आप उनके ब्लॉग पर जाकर उनकी भावनाओ को देख सकते हैं.
उन्हों जो बाते लिखी है वे खुद नहीं कह रहे हैं बल्कि आज जो हालत है उस पर बोले हैं और ऐसा है भी. जरा गौर से पढ़िए. मंदिर-मस्जिद के विवाद में अधिकतर हिन्दू ही कहते रहते हैं की बेमतलब का झगडा हो रहा है. वह फला-फला चीज़े बननी चाहिए. लोग प्रवचन में बैठकर मोबाईल पर लगे रहते हैं. उनका कहना है की धार्मिक होने का नाटक न करे लोग बल्कि निष्ठापूर्वक धार्मिक बने.
उन्होंने सही प्रश्न उठाया है, इसी मिशनरी के स्कूलों में पढ़कर आज के बच्चे अपनी सभ्यता भूलते जा रहे हैं. पूजा के नाम पर फ़र्ज़ अदायगी होती है. उनके अन्दर सच्ची श्रद्धा तभी पैदा होगी जब वे अपने इतिहास को जानेगे.
वास्तव में यह कमिय देखि जा रही है . इसके प्रति गंभीर होना होगा.
आप जानते हैं रामचरित मानस में एक चौपाई है. """ ढोल गवार, शुद्र, पशु, नारी.. सकल ताड़ना के अधिकारी" इसका अर्थ तो आपको मालूम ही होगा. न हो तो आशुतोष से पूछ लीजियेगा. यह पंक्ति समुद्र ने किन परिश्तिथियों में कही, यह वही जान सकता है. जो रामचरित मानस पढ़ा हो.
पर इसका सीधा अर्थ यह लगा लिया गया की रामायण में छोटी जातियों को मारने पीटने के लिए कहा गया है. और अधिकतर इस बात को सच मानने वाले हिन्दू है. ऐसी बातो को लेकर ही धर्म को बदनाम किया गया और हिन्दू विरोधी सरकारे सत्ता में है.
आप उनके कहे गए शब्दों को नहीं भाव को समझिये. वे कहना क्या चाहते हैं. उनके ब्लॉग पर भी हो आईये. पर इस तरह की अशोभनीय भाषा कभी मत निकला करे. आप युवा हैं दिलो को जोड़ना सीखिए. बुजुर्गो का अपमान करना नहीं. यदि हमारी बाते बुरी लगी हो तो मैं आपसे क्षमा चाहूँगा.
अशोक जी, आप हमारे बड़े हैं. कृपया मंच के नियम पढ़िए. और उसी के अनुरूप पोस्ट करे. आप द्वारा कही गयी बाते गौर करने लायक हैं.

अंकित कुमार पाण्डेय ने कहा…

हो सकता है मेरे शब्द कुछ कठोर हो गए हों तो उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ परन्तु जिस तरह निर्नाज्जातापूर्ण तरीके से सस्ते लोकप्रचार के लिए ये अयोध्याया में मस्जिद बनवाने की वकालत कर रहे हैं वह किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं हो सकता है और वो भी फतवा शैली में | भगवन का घर है तो कोई भी कुछ भी बोल देता हिया अगर इनके खुद के घर पर कब्ज़ा कर ले कोई तो क्या ये शांति के लिए उसका आधा हिस्सा आक्रमणकारी को दे सकते हाँ या वहां पर अस्पताल या उस आक्रमणकारी के लिए घर बनवा सकते हिं ??? कदापि नहीं तो हिन्दू आस्थाओं से मजाक क्यों ??

और जहाँ तक सच्चे हिंदुत्व की बात है तो मुझसे शास्त्रार्थ कर लें मैं तैयार हूँ और मैं अपने विचारों में परिवर्तन के लिए सदैव तैयार रहता हूँ बस परिवर्तन शुभ होने चाहिए हमारे यहाँ सम्मान वयन्ति या उसकी आयु का नहीं अपितु उसके कर्मों का किया जाता है और यह लेख निंदनीय है |

इस सब के अतिरिक्त मेरा यह विचार है की जिनको प्रतिक्रियाओं से डर लगता हो उनको नोटबुक में लिखना चाहिए

virendra sharma ने कहा…

हिंदुत्व एक जीवन शैली का नाम है किसी धर्म या कर्मकाण्ड का नहीं .सर्व -ग्राही ,सर्व -समावेशी ,सहनशील होना ,आदर से विपरीत विचार को जगह देना हिंदुत्व है शुद्ध उच्चारण का सम्बन्ध भाषिक लगाव से है .शुद्ध उच्चारण वैसे आते कितनों को हैं ?.पूजा भावना से होती है किसी अनुष्ठान या मंत्रोच्चार से नहीं वह तो एक अनुष्ठान भर है .विधि है .यहाँ सब को छूट है किसी भी देवता को आराधे -पूजे ,३३० मिलियन हैं ,कोई फसाद नहीं कोई काफिर नहीं कहलाता .यह है हिंदुत्व .

सुज्ञ ने कहा…

अंकित जी नें सही विरोध प्रदर्शित किया है। यदि हिंदु को सही उच्चारण नहीं आता तो मन्दिरों की जगह मस्जिदें बन जानी चाहिए? विचित्र तर्क है? मात्र इसलिए राम के जन्म पर प्रश्न-चिन्ह लग जाना चाहिए?
वीरूभाई नें सही कहा-"हिंदुत्व एक जीवन शैली का नाम है किसी धर्म या कर्मकाण्ड का नहीं .सर्व -ग्राही ,सर्व -समावेशी ,सहनशील होना ,आदर से विपरीत विचार को जगह देना हिंदुत्व है शुद्ध उच्चारण का सम्बन्ध भाषिक लगाव से है ."
अगर हिंदु में सौहार्द है तो यही साक्ष्य है कि हिंदु भले श्र्लोकों का उच्चारण न कर पाए, उन श्र्लोकों को जीता है।

अंकित कुमार पाण्डेय ने कहा…

इसके अतिरिक्त रामचरितमानस शुद्ध उच्चारण पर आधारित ग्रन्थ नहिऊ है यह तो भक्ति और ज्ञान पर आधारित ग्रन्थ है |

अंकित कुमार पाण्डेय ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Mithilesh dubey ने कहा…

Aage se Dhyan rakhiye ki kisi bhi dharm se jude kisi bhi mudde par koi lekh BBLM par prkasht na kare. Phir wah chahe dharam ke khilaph ho ya paksh me, aage se aise lekho ko Delete kar diya jayega

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