गुरुवार, 16 जून 2011

प्रेमकाव्य-महाकाव्य. .पंचम सुमनान्जलि (क्रमश:)..चतुर्थ रचना ....डा श्याम गुप्त


                             प्रेम किसी एक तुला द्वारा नहीं  तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक   विहंगम  भाव है | प्रस्तुत है- पंचम -सुमनान्जलि..समष्टि-प्रेम....जिसमें देश व राष्ट्र -प्रेम , विश्व-वन्धुत्व  व मानव-प्रेम निहित ...७ गीत व कवितायें ...... देव दानव मानव,  मानव धर्म,  विश्व बंधुत्व ,  गीत लिखो देश के,  बंदेमातरम ,  उठा तिरंगा हाथों  में  व  ऐ कलम अब छेड़ दो.... प्रस्तुत की जायेंगीं |  प्रस्तुत है ....पंचम  ... रचना ...

    ....वंदे मातरम् .... 

अब तो बंदे मातरम् के गान से भी,  


धर्म  की निरपेक्षिता खतरे में है |

शूरवीरों  के वो  किस्से -कथाएं ,

अब भला बच्चों से कोई  क्यों कहे ?


देश सारा  खेलता अन्त्याक्षरी,

बस करोड़ों जीतने के ख्वाब हैं |

व्यर्थ की उलझन भरे हैं सीरियल,

पात्र  सारे  बन गए  बाज़ार  हैं ||


नक़ल चलती अक्ल का है काम क्या ,

सेक्स,  हिंसा,   द्रश्य   पारावार  है |

अंग्रेज़ी नाविल व फ़िल्में चल रहीं ,

रो रहा  साहित्य  का  बाजार  है ||

 

धर्म  संस्कृति का पलायन होरहा,

अर्थ-संस्कृति का हुआ है अवतरण |

चंद सिक्कों के लिए हों अर्ध नग्ना,

बेचतीं तन नारियाँ, औ नर वतन ||


धर्म संस्कृति राष्ट्र की थाती गयी ,

शेयरों  की  नित  नई  ऊंचाइयां  |

नक़ल की संस्कृति बढ़ावा पारही,

राष्ट्र संस्कृति देश की रुसवाइयां ||

 

हर तरफ हैं लोग दिखते ऊंघते,

या  कि सोते, हर कुए में भांग है |

शौर्य -गाथाएं पढ़े गायें लिखें ,

यह  तकाजा है समय की मांग है ||


शिवा राणा आन, हठ हम्मीर की ,

आज फिर से कृष्ण की, रघुबीर की |

धर्म  दर्शन  वेद और पुराण की,

है  जरूरत फिर नए संग्राम की ||


उठो, ऐ प्यारे वतन के वासियों !

नींद छोडो, चमन में खतरा खडा |

अस्मिताएं अमन खतरे में सभी,

मान, सुख-सम्मान खतरे में पड़ा ||


शूरवीरों के वो किस्से, कहानी,

पुत्र  से  कोई  पिता कैसे कहे,|

अब तो वंदे मातरम् के गान से ,

धर्म की निर्पेक्षिता खतरे में है ||









 



3 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

गीत लिखो देश के, बंदेमातरम , सुन्दर प्रस्तुति

Shalini kaushik ने कहा…

धर्म संस्कृति का पलायन होरहा,
अर्थ-संस्कृति का हुआ है अवतरण |
चंद सिक्कों के लिए हों अर्ध नग्ना,
बेचतीं तन नारियाँ, औ नर वतन ||
bahut sahi kataksh kiya hai aapne .bahut sundar prastuti.

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद हरीश जी व शालिनी....

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