गुरुवार, 30 जून 2011

प्रेम काव्य-महाकाव्य.. षष्ठ सुमनान्जलि--रस श्रृंगार-संयोग( क्रमश:)- गीत-4 ---डा श्याम गुप्त





3 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

क्या आपकी अर्चानो की तारीफ करनी जरुरी है, यदि हां तो शब्दकोष देखना पड़ेगा. लाजबाब प्रस्तुति स्वागत..

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद हारीश जी....शायद आपका मतलब रचनाओं से है----बिलकुल नहीं ..जिसको जो जैसा लगे वह कहे....

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद दीपक जी.....

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