शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

मोड़ जीवन के ---कहानी--- डा श्याम गुप्त...

कहानी--- डा श्याम गुप्त...


            एक साहित्यिक आयोजन में हिन्दी कविता पर सारगर्भित व्याख्यान
के पश्चातअपने स्थान पर बैठने पर साथ में बैठे एक वरिष्ठ साहित्यकार ने
कहा ,'बहुत शानदार व्याख्या , डा रसिक जी , आपने किस विश्वविद्यालय
से व साहित्य के किस विषय पर शोध किया है ?
               क्या अभिप्रायः है आपका? आश्चर्य चकित होते हुए रसिक जी ने पूछा
,तो बगल में बैठे हुए अनित्य जी हंसते हुए बोले , अरे! रसिक जी कोई साहित्य
के डाक्टर थोड़े ही हैं , वे तो इन्जीनियारिंग के प्रोफेशनल पी-एच डी धारक हैं।
         ओह! पर यह मोड़ कैसे व कब आया? कहाँ नीरस इन्जीनियरिंग और
कहाँ साहित्य ? वे रसिक जी की ओर उन्मुख होते हुए कहने लगे 'कविता तो
सभी कर लेते हैं पर सम्पूर्ण साहित्यकारिता , हर क्षेत्र में वह भी पूरी गहराई तक,
यह मोड़ कैसे आया?
          रसिक जी हंसने लगे। यह तो मेरी व्यक्तिगत रूचि का कार्य है। मैं यह
मानता हूँ कि व्यक्ति को अपने प्रोफेशनल कार्य या अन्य कार्य में ऋद्धि-सिद्धि -
प्रसिद्धि प्राप्त कर लेने के पश्चात वहीं अटके नहीं रह जाना चाहिए अपितु
आगे बढ़ जाना चाहिए , नयी-नयी राहों पर, लक्ष्यों पर। जीवन स्वयं ऋजु मार्ग
 कब होता है?  जीवन तो स्वयं ही विभिन्न मोड़ों से भराहोता है।
         वे शायद अतीत के झरोखों में झांकते हुए कहने लगे ,यह कोई मेरे जीवन
का प्रथम मोड़ नहीं है। बचपन में प्राथमिक कक्षाओं में उन्मुक्त, चिंता रहित
 खेलने-खाने के दिनों में सामान्य क्षात्र की भांति जीवन का एक सुन्दर सहज भाग
बीता ही था कि कुछ घरेलू परिस्थितियों के कारण मुझे अध्ययन त्याग कर
प्राइवेट सर्विस करनी पडी जो जीवन का दूसरा दौर था। वह भी एक विशिष्ट
जीवन-अनुभव का दौर रहा, जहां बहुत कुछ स्वयं शिक्षा के अनुभवों द्वारा,
साथियों, सहकर्मियों, मालिकों द्वारा विभिन्न प्रकार का ग्यान हुआ। ग्यान
कहीं से भी, किसी से भी,कभी भी, किसी भी मोड़ पर प्राप्त किया जा सकता है।
ज्ञान ही मानव का वास्तविक साथी है जो हर मोड़ पर आपका साथ देता है,
अतः प्रत्येक मोड़ पर ग्यान प्राप्त करते रहना चाहिये।
         कई वर्ष बाद दूसरा मोड़ तब आया जब मैंने बड़े भाई के कहने पर घर पर
ही अध्ययन करके व्यक्तिगत तौर पर जूनियर हाई स्कूल की परीक्षा दी,
 फ़िर चला अध्ययन का नया दौर , सुहाना दौर ,किशोरावस्था से युवावस्था तक।
हाई स्कूल, इन्टर्मीजिएट, के बाद अभियन्त्रण वि. विध्यालय में चयन के
साथ प्रोफ़ेशनल कालेज के मनोरम, स्वप्निल, युवा तरन्गित वातावरण में
ग्रेजुएशन व पोस्ट-ग्रेजुएशन का आनन्दमय दौर व शोधकर्ता रूप में पी-एच डी
की डिग्री का सुहाना गौरवपूर्ण अनुभव।
             अभियान्त्रीकरण विद्यालय में अध्यापन , तदुपरान्त निज़ी कम्पनी
चलाने का दौर तीसरा मोड़ था जीवन का जो एक अति विशिष्ट व महत्वपूर्ण
अनुभव का दौर था। तत्पश्चात केन्द्रीय सरकार, रेलवे के प्रथम श्रेणी अफ़सर
के रूप में सेवा एक चौथा मोड़ था, जो ज़िन्दगी की भाग- दौड, विभागीय 
मसले,द्वन्द्व,खेल-कूद,प्रतियोगिता,  विवाह,परिवार के दायित्व के
साथ साथ युवा मन के स्वप्निल सन्सार, धर्म,अर्थ, काम के सन्तुलित
 व्यवहार की कठिनतम जीवन चर्या, रचनात्मक-कार्य ,  धन प्राप्ति,
सिद्धि-प्रसिद्धि प्राप्ति काएक सुन्दरतम दौर भी रहा।
          लिखना पढ़ना तो सदैव ही मेरा प्रिय व्यक्तिगत अतिरिक्त कर्म
( पास्ट टाइम) रहा है। बचपन , स्कूल.कालेज, वि. विद्यालय सभी में यह क्रम
सेवा के साथ साथ भी चलता रहा। यह जो आप देख रहे हैं यह पांचवा मोड़
सेवा-निव्रत्ति के पश्चात समस्त सिद्धि, प्रसिद्धि,के विभिन्न आमन्त्रण,
लोभ-लालच, अर्थ प्राप्ति के साधनों से भी निव्रत्त होकर आया है, जो आपके
सम्मुख है, कि बस अब सन्सार बहुत हो गया कुछ बानप्रस्थी भाव भी
अपनाना चाहिये, अपने स्वयं के लिये जीना चाहिये। स्वयं में स्थापित होकर
समाज भाव, अपना प्रिय स्वतन्त्र कर्म भी करना चाहिये। आगे कौन सा मोड़
होगा यह तोईश्वर ही जाने? शायद इस सारे ताम-झाम से
भी सन्यस्त होने का......।

5 टिप्पणियाँ:

विभूति" ने कहा…

bhut prabhaavi kahani hai...

आशुतोष की कलम ने कहा…

Mujhe batayen kya engineering graduate hindi men sodh kary kar sakta hai????
i have a great passion for hindi poets and poem and want to do the same..

shyam gupta ने कहा…

क्यों नहीं..मेरे विचार में कोई भी ग्रेजुएट कर सकता है.... वास्तविक नियम तो यूनिवर्सिटी बातायेगी...

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद सुषमा जी....

poonam singh ने कहा…

भावभरी रचना।

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