बुधवार, 6 अप्रैल 2011

प्रेम काव्य-महाकाव्य--तृतीय सुमनान्जलि..क्रमश:.---डा श्याम गुप्त


  प्रेम काव्य-महाकाव्य--गीति विधा  --     रचयिता---डा श्याम गुप्त  

  -- प्रेम के विभिन्न  भाव होते हैं , प्रेम को किसी एक तुला द्वारा नहीं  तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत  सुमनांजलि- प्रेम भाव को ९ रचनाओं द्वारा वर्णित किया गया है जो-प्यार, मैं शाश्वत हूँ, प्रेम समर्पण, चुपके चुपके आये, मधुमास रहे, चंचल मन, मैं पंछी आजाद गगन का, प्रेम-अगीत व प्रेम-गली शीर्षक से  हैं |---प्रस्तुत है तृतीय रचना.प्रेम समर्पण

                 प्रेम समर्पण


प्यार तुम हो,प्रीति तुम हो,इस जगत की रीति तुम हो |
तुम ही  प्रभु अभ्यर्थना हो, तृषित मन की अर्चना हो ||
मैं तुम्हारी अर्चना में ,  पुष्प अर्पण कर रहा हूँ |
तुम को अस्वीकार हो, पर मैं समर्पण कर रहा हूँ || 

तुम ही मन का मीत हो,तुम मेरा जीवन गीत हो |
तुम से प्रभु की प्रार्थना,तुम ही मेरा संगीत हो ||

तुम से मेरी साधना,  तुम से ही सारी व्यंजना |
तुम ही मेरा काव्य-सुर हो, तुम से  मेरी सर्जना ||

तुम चाहे स्वीकार लो, चाहो तो अस्वीकार दो |
पर इन्हें इक बार छूकर, मान का प्रतिकार दो ||

मैं चला जाऊंगा लेकर, पुष्प ही ये  मान के |
तुम हो मेरे पास ही, रख लूंगा तुमको मान के ||
तुम को अस्वीकार हो,पर मैं समर्पण कर रहा हूँ |
मैं तुम्हारी अर्चना में ,पुष्प अर्चन कर रहा हूँ ||



6 टिप्पणियाँ:

ashok kumar verma 'bindu' ने कहा…

very very good!

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

प्रेम की बहुत सुन्दर और पवित्र रचना ..

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

prem ka sara saar bata diya ......samrpan se lekar usme samahit hone ka bhav ......prem se bhigi sunder rachna ....

kirti hegde ने कहा…

प्रेम की बहुत सुन्दर और पवित्र रचना ..

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद, अशोक जी,सुरेन्द्र जी, रजनी जी व कीर्ति ..प्रेम तो स्वय्ं में ही सुन्दर पवित्र व रस सिक्त भाव है....

हरीश सिंह ने कहा…

बहुत सुन्दर और पवित्र रचना

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