सोमवार, 18 अप्रैल 2011

आठ पापों का घड़ा

एक बार कवि कालीदास बाज़ार घूमने निकले. एक स्त्री घड़ा और कुछ कटोरियाँ लेकर बैठी थी. ग्राहकों के इंतजार में. कविराज को कौतूहल हुआ की यह महिला क्या बेचती है, पास जाकर पूछा...
" बहन तुम क्या बेचती हो..? "
"मैं पाप बेचती हूँ, मैं स्वयं लोंगो से कहती हूँ मेरे पास पाप है, मर्जी है तो ले लो, फिर भी लोग चाह पूर्वक ले जाते हैं." महिला ने कुछ अजीब सी बात कही, कालिदास उलझन में पड़ गए.  पूछा..
"घड़े में कोई पाप होता है"
महिला बोली " हां.. हा. होता है, जरूर होता है, देखो जी मेरे इस घड़े में आठ पाप भरे हुए है. : "बुद्धिनाश" "लड़ाई-झगडे"  "पागलपन"  "बेहोशी", "विवेक का नाश", "सद्गुण का नाश", "सुखों का अंत", और "नरक में ले जाने वाले तमाम दुष्कृत्य"
"अरे बहन इतने सारे पाप बताती है तो आखिर है क्या तेरे घड़े में...?" कालिदास की उत्सुकता बढ़ रही थी. 
वह स्त्री बोली    "शराब............शराब........  शराब .....यह शराब ही उन सब पापो की जननी है, जो शराब पीता है वह इन आठों पापो का शिकार बनता है." कालिदास उस महिला की चतुराई पर खुश हो गए. 
महानुभावो के वचन.
"मैं मद्यपान को चोरी-डकैती, दुराचार व वेश्यावृत्ति से भी ज्यादा भयंकर पाप-चेष्टा मानता हूँ. क्रूर व्यक्तियों से भी शराबी  ज्यादा क्रूर हो सकता है, लेकिन शराबी निस्तेज क्रूर है ".......... महात्मा गाँधी 

"जो पुरुष नशीले पदार्थो का सेवन करता है वह घोर पाप करता है." ............ भगवान बुद्ध 

"अल्लाह ने लानत फरमाई है शराब पर, पीने और पिलानेवाले पर, बेचने और खरीदने वाले पर और किसी भी प्रकार का सहयोग देने वाले पर".................  - हज़रत मुहम्मद पैगम्बर  

और मैंने कहा.......
जाम पर जाम पीने से क्या फायदा,
रात बीती सुबह को उतर जाएगी,
तू हरिरस {प्रभु} की प्यालियाँ पी ले,
तेरी जिन्दगी सुधर जाएगी..

12 टिप्पणियाँ:

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

देश और समाजहित में देशवासियों/पाठकों/ब्लागरों के नाम संदेश:-
मुझे समझ नहीं आता आखिर क्यों यहाँ ब्लॉग पर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना चाहते हैं? पता नहीं कहाँ से इतना वक्त निकाल लेते हैं ऐसे व्यक्ति. एक भी इंसान यह कहीं पर भी या किसी भी धर्म में यह लिखा हुआ दिखा दें कि-हमें आपस में बैर करना चाहिए. फिर क्यों यह धर्मों की लड़ाई में वक्त ख़राब करते हैं. हम में और स्वार्थी राजनीतिकों में क्या फर्क रह जायेगा. धर्मों की लड़ाई लड़ने वालों से सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या उन्होंने जितना वक्त यहाँ लड़ाई में खर्च किया है उसका आधा वक्त किसी की निस्वार्थ भावना से मदद करने में खर्च किया है. जैसे-किसी का शिकायती पत्र लिखना, पहचान पत्र का फॉर्म भरना, अंग्रेजी के पत्र का अनुवाद करना आदि . अगर आप में कोई यह कहता है कि-हमारे पास कभी कोई आया ही नहीं. तब आपने आज तक कुछ किया नहीं होगा. इसलिए कोई आता ही नहीं. मेरे पास तो लोगों की लाईन लगी रहती हैं. अगर कोई निस्वार्थ सेवा करना चाहता हैं. तब आप अपना नाम, पता और फ़ोन नं. मुझे ईमेल कर दें और सेवा करने में कौन-सा समय और कितना समय दे सकते हैं लिखकर भेज दें. मैं आपके पास ही के क्षेत्र के लोग मदद प्राप्त करने के लिए भेज देता हूँ. दोस्तों, यह भारत देश हमारा है और साबित कर दो कि-हमने भारत देश की ऐसी धरती पर जन्म लिया है. जहाँ "इंसानियत" से बढ़कर कोई "धर्म" नहीं है और देश की सेवा से बढ़कर कोई बड़ा धर्म नहीं हैं. क्या हम ब्लोगिंग करने के बहाने द्वेष भावना को नहीं बढ़ा रहे हैं? क्यों नहीं आप सभी व्यक्ति अपने किसी ब्लॉगर मित्र की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं और किसी को आपकी कोई जरूरत (किसी मोड़ पर) तो नहीं है? कहाँ गुम या खोती जा रही हैं हमारी नैतिकता?

मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अब देखते हैं मुझे मेरी गलती का कितने व्यक्ति अहसास करते हैं और मुझे "क्षमादान" देते हैं.
आपका अपना नाचीज़ दोस्त रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

आशुतोष की कलम ने कहा…
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आशुतोष की कलम ने कहा…

आज के ब्लॉगजगत में कुछ लोगो की पल पल बदलती निष्ठाएं देख कर बच्चन जी की एक पंक्ति याद आ गयी..
सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला,
सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला,
शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से
चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।

बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,
गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!

मुसलमान औ’ हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।
..........
हरीश भाई सिर्फ कविता लिखी है वो भी अपनी नहीं नाराज मत होइएगा..
मदिरा पीना स्वस्थ्य एवं समाज के लिए हानिकारक है.....
हरीश जी ने बहुत बढियां सन्देश दिया..असली नशा तो हरिरस में ही है..
आभार

हरीश सिंह ने कहा…

भाई रमेश जी, आपके विचारों से पूर्णरुपेन सहमत, हम भी चाहते है की लोग स्वच्छ मानसिकता में अपनी उर्जा देश व समाज के हित में करें.
अनवर भाई के साथ LBA परिवार को एक खुला ख़त

हरीश सिंह ने कहा…

भाई आशुतोष जी आप जैसे क्रन्तिकारी लेखको को हम सुधर ही नहीं सकते, आपकी कविता अच्छी है बस इस ब्लॉग पर इसे पोस्ट के रूप में मत प्रकाशित करियेगा.

Vaanbhatt ने कहा…

harish ji, kalidaas ji bach kaise gaye...bachchan ji ne pura intzaam kar diya tha...hala bhi aur bala bhi...

shyam gupta ने कहा…

बहुत सही हरीश जी----और मैंने कहा है--

"पुरखे कहते कभी न करना,
कोई नशा न चखना हाला ।
बन मतवाला प्रभु चरणों का,
राम नाम का पीलो प्याला ॥

मन्दिर-मस्ज़िद सच्च्च्ची पर,
चलने की हैं राह बताते ।
और लडखडाकर नाली की,
राह दिखाती मधुशाला ॥ "
----श्याम मधुशाला से( काव्य निर्झरिणी)

shyam gupta ने कहा…

मन्दिर-मस्ज़िद सच्चाई पर,

मदन शर्मा ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
मदन शर्मा ने कहा…

आशुतोष जी से पूरी तरह सहमत!
देखा जाय तो आज की सच्चाई यही है ....

Shalini kaushik ने कहा…

lakh buraiyon kee jad hai tab bhi jise dekho iske peechhe pagal hai.
kash aapki post padh kar aise logon ko kuchh akal aa jaye to aapki post sarthakta ka charam chhoo jaye.

santoshkumar ने कहा…

कृपया मूल श्लोक... घटके वसन्ति ।संभव हो तो प्रेषित करें।

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