रविवार, 20 मार्च 2011

आओं पानी बचाएं

अवनीश कुमार

आई रे आई होली, रंगों की है ये होली
पानी की बर्बादी है ये होली।
एक साल में पीते तुम जितना पानी
कर देते बर्बाद केवल एक दिन में
सोचों कैसी है ये होली।
अपने मजे को छोडों,
क्या खेलना जरूरी है ये पानी की होली।


अब करो ये वादा अपने आप से
हम खेलेंगे गुलाल से ये होली ।
जिससे बने मजेदार ये होली
हमें बनाए जिम्मेदार, ये होली।
इस होली पर ले कसम
कि अब कभी ना खेलेंगे पानी से ये होली।
हम बचाएंगे पानी जिससे पूरे जीवन में हो खुशहाली
आई रे आई होली, रंगों की है ये होली।

4 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

होली mubarak ho

Unknown ने कहा…

जिसे देखो वही हिन्दू त्यौहारों और हिन्दुओं में बुराइयां छांट रहा है। विकास के नाम पर तमाम पेड़ काट दिए, होली खराब...एयरपोर्ट, गॉल्फ़, हाई वे, कॉलॉनियां कौन बना रहा है? हर साल लाखों मासूम जानवर कौन काट रहा है? गौ वंश का कौन नाश कर रहा है? बैल की जगह ट्रैक्टर कौन चला रहा है?...बहुत सारे सवाल हैं, कुछ सोचने की जरूरत है। होली-दिवाली-हिन्दू धर्म और हिन्दुओं में बुराइयां निकालना बहुत आसान है...

PARAM ARYA ने कहा…

ज्ञान के लिए चाहिए साधना और संयम और उसकी प्राप्ति के लिए चाहिए यम नियम.
जोकि यहाँ कम लोगों में है और नारियों में भी हरेक में नहीं है . होलिका और पुराणों के बारे में ऋषि दयानंद के विचार आज मार्गदर्शक हैं परन्तु हठ और दुराग्रह के कारण लोग नहीं मानते वरना हरे तो छोडो सूखे लक्कड़ कंडे भी कहीं न जलाये जा रहे होते , फ़ालतू की आग जलाकर वैश्विक ताप में वृद्धि क्यों की जा रही है ?
इस पर भी विचार आवश्यक है .

avneesh ने कहा…

श्रीमान टीसी चंदर जी मेरा किसी त्यौहार के बारे में बुराई निकालने का कोई ईरादा नही है। लेकिन यह एक सच है और इससे हम भाग नहीं सकते औऱ रही बात कुछ करने की, तो किसी ना किसी को तो शरूआत करनी ही होगी।

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