शुक्रवार, 4 मार्च 2011

अपनी सामाजिक बेटीओं-बहनों की ख़रीद-फ़रोख्त::: वेश्यालयों को समाज और क़ानून या प्रशासन की ओर से मंजूरी.

उजाले और चकाचौंध के भीतर खौफ़नाक अँधेरे
नारी जाति के वर्तमान उपलब्धियां- शिक्षा, उन्नति, आज़ादी, प्रगति और आर्थिक व राजनैतिक सशक्तिकरण आदि यक़ीनन संतोषजनक, गर्वपूर्ण, प्रशंसनीय और सराहनीय है. लेकिन नारी स्वयं देखे कि इन उपलब्धियों के एवज़ में नारी ने अपनी अस्मिता, मर्यादा, गौरव, गरिमा, सम्मान व नैतिकता के सुनहरे और मूल्यवान सिक्कों से कितनी बड़ी कीमत चुकाई है. जो कुछ कितना कुछ उसने पाया उसके बदले में उसने कितना गंवाया है. नई तहजीब की जिस राह पर वह बड़े जोश और ख़रोश से चल पड़ी- बल्कि दौड़ पड़ी है- उस पर कितने कांटे, कितने विषैले और हिंसक जीव-जंतु, कितने गड्ढे, कितने दलदल, कितने खतरे, कितने लूटेरे, कितने राहजन और कितने धूर्त मौजूद हैं.

आईये देखते हैं कि आधुनिक सभ्यता ने नारी को क्या क्या दिया

व्यापक अपमान
  • समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में रोज़ाना औरतों के नंगे, अध्-नंगे, बल्कि पूरे नंगे जिस्म का अपमानजनक प्रकाशन.
  • सौन्दर्य-प्रतियोगिता... अब तो विशेष अंग प्रतियोगिता भी... तथा फैशन शो/ रैंप शो के कैट-वाक् में अश्लीलता का प्रदर्शन और टीवी चैनल द्वारा ग्लोबली प्रसारण
  • कारपोरेट बिज़नेस और सामान्य व्यापारियों/उत्पादकों द्वारा संचालित विज्ञापन प्रणाली में औरत का बिकाऊ नारीत्व.
  • सिनेमा टीवी के परदों पर करोडों-अरबों लोगों को औरत की अभद्र मुद्राओं में परोसे जाने वाले चल-चित्र, दिन-प्रतिदिन और रात-दिन.
  • इन्टरनेट पर पॉर्नसाइट्स. लाखों वेब-पृष्ठों पे औरत के 'इस्तेमाल' के घिनावने और बेहूदा चित्र
  • फ्रेंडशिप क्लब्स, फ़ोन सर्विस द्वारा दोस्ती.
(सवाल: अब आप नारी की इस स्थिति के समर्थक तो हो नहीं सकते, और अगर है तो क्या आप अपनी माँ-बहनों को ऐसा करने दे सकते हैं?)

यौन शोषण (Sexual Exploitation)
  • देह व्यापार, गेस्ट हाउसों, सितारा होटलों में अपनी 'सेवाएँ' अर्पित करने वाली संपन्न व अल्ट्रामाडर्न कॉलगर्ल्स.
  • रेड लाइट एरियाज़ में अपनी सामाजिक बेटीओं-बहनों की ख़रीद-फ़रोख्त. वेश्यालयों को समाज और क़ानून या प्रशासन की ओर से मंजूरी. सेक्स-वर्कर, सेक्स-ट्रेड, सेक्स-इंडस्ट्री जैसे आधुनिक नामों से नारी-शोषण तंत्र की इज्ज़त-अफ़ज़ाई व सम्मानिकरण.
  • नाईट क्लब और डिस्कोथेक में औरतों और युवतियों के वस्त्रहीन अश्लील डांस, इसके छोटे रूप में सामाजिक संगठनों के रंगरंज कार्यक्रमों में लड़कियों के द्वारा रंगा-रंग कार्यक्रम को 'नृत्य-साधना' का नाम देकर हौसला-अफ़ज़ाई.
  • हाई-सोसाईटी गर्ल्स, बार-गर्ल्स के रूप में नारी यौवन व सौंदय्र की शर्मनाक दुर्गति.
यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment)
  • फब्तियों की बेशुमार घटनाएँ.
  • छेड़खानी की असंख्य घटनाएँ, जिनकी रिपोर्ट नहीं होती. देश में सिर्फ दो वर्षों में (2005-06) 36,617 घटनाएँ.
  • कार्य-स्थल पर यौन उत्पीड़न. (Women unsafe at work place)
  • सड़कों, गलियों, बाज़ारों, दफ़्तरों, अस्पतालों, चलती कारों, दौड़ती बसों आदि में औरत असुरक्षित. (Women unsafe in the city)
  • ऑफिस में नौकरी बहाल रहने के लिए या प्रमोशन के लिए बॉस द्वारा महिला कर्मचारी का यौन शोषण.
  • टीचर या ट्यूटर द्वारा छात्राओं का यौन उत्पीड़न.
  • नर्सिंग होम/अस्पतालों में मरीज़ महिलाओं का यौन-उत्पीड़न.
यौन-अपराध
  • बलात्कार- दो वर्ष की बच्ची से लेकर अस्सी साल की वृद्धा से- ऐसा नैतिक अपराध, जिसकी अख़बारों में पढ़कर किसी के कानों में जूं तक नहीं रेंगती.मानों किसी गाड़ी से कुचल कर कोई चुहिया मर गयी हो.
  • 'सामूहिक बलात्-दुष्कर्म' इतने आम हो गएँ हैं की समाज ने ऐसी दुर्घटनाओं की ख़बर पढ़-सुन कर बेहिसी और बेफ़िक्री का खुद को आदि बना लिया है.
  • युवतियों, बालिकाओं, किशोरियों का अपहरण, उनके साथ हवास्नाक ज़्यादती, सामूहिक ज्यात्दी और हत्या भी...
  • सिर्फ़ दो वर्षों (2005-06) आबुरेज़ी (बलात्कार) की 35,195 वाक़ियात. अनरिपोर्टेड घटनाएँ शायेद दस गुना ज़्यादा हों.
  • सेक्स-माफिया द्वारा औरतों के बड़े-बड़े संगठित कारोबार. यहाँ तक कि विधवा आश्रम की विधवा भी सुरक्षित नहीं.
  • विवाहित स्त्रियों का पराये मर्द से सम्बन्ध (Extra Marital Relations) इससे जुड़े अन्य अपराध हत्याएं और परिवार का टूटना-बिखरना आदि.
औरतों पर पारिवारिक यौन अत्याचार (कुटुम्बकीय व्यभिचार) व अन्य ज्यातादियाँ
  • बाप-बेटी, बहन-भाई के पवित्र रिश्ते भी अपमानित.
  • आंकडों के अनुसार बलात-दुष्कर्म में लगभग पचास प्रतिशत निकट सम्बन्धी मुल्व्वस (Incest).
  • दहेज़-सम्बन्धी अत्याचार व उत्पीड़न. जलने, हत्या कर देने आत्म-हत्या पर मजबूर कर देने, सताने, बदसुलूकी करने, मानसिक यातना देने की बेशुम्मार घटनाएँ. कई बहनों का एक साथ सामूहिक आत्महत्या दहेज़ के दानव की देन है.
कन्या भ्रूण-हत्या (Female Foeticide) और कन्या वध (Female Infanticide)
बच्ची का क़त्ल उसके पैदा होने से पहले माँ के पेट में ही. कारण: दहेज़ व विवाह का क्रूर और निर्दयी शोषण-तंत्र. पूर्वी भारत में एक इलाके में यह रिवाज़ है कि अगर लड़की पैदा हुई तो पहले से तयशुदा 'फीस' के एवज़ में दाई उसकी गर्दन मरोड़ देगी और घूरे में दबा आएगी. कारण: वही दहेज़ व विवाह का क्रूर और निर्दयी शोषण-तंत्र और शादी के नाकाबिले बर्दाश्त खर्चे. कन्या वध के इस रिवाज़ के प्रति नारी-सम्मान के ध्वजावाहकों की उदासीनता.

सहमती यौन-क्रिया (Fornication)
  • अविवाहित रूप से नारी-पुरुष के बीच पति-पत्नी का सम्बन्ध (Live-in-Relation) पाश्चात्य सभ्यता का ताज़ा तोह्फ़ा. स्त्री का सम्मानपूर्ण 'अपमान'.
  • स्त्री के नैतिक अस्तित्व के इस विघटन में न क़ानून को कुछ लेना देना, न ही नारी जाति के शुभ चिंतकों का कुछ लेना देना, न पूर्वी सभ्यता के गुण-गायकों का कुछ लेना देना, और न ही नारी स्वतंत्रता आन्दोलन के लोगों का कुछ लेना देना.
  • सहमती यौन-क्रिया (Fornication) की अनैतिकता को मानव-अधिकार (Human Right) नामक 'नैतिकता का मक़ाम हासिल.
समाधान
नारी के मूल अस्तित्व के बचाव में 'All India Bloggers' Association' की इस पहल में आईये, हम सब साथ हो और समाधान की ओर अग्रसर हों.

नारी कि उपरोक्त दशा हमें सोचने पर मजबूर करती है और आत्म-ग्लानी होती है कि हम मूक-दर्शक बने बैठे हैं. यह ग्लानिपूर्ण दुखद चर्चा हमारे भारतीय समाज और आधुनिक तहज़ीब को अपनी अक्ल से तौलने के लिए तो है ही साथ ही नारी को स्वयं यह चुनना होगा कि गरीमा पूर्ण जीवन जीना है या जिल्लत से.

नारी जाति की उपरोक्त दयनीय, शोचनीय, दर्दनाक व भयावह स्थिति के किसी सफल समाधान तथा मौजूदा संस्कृति सभ्यता की मूलभूत कमजोरियों के निवारण पर गंभीरता, सूझबूझ और इमानदारी के साथ सोच-विचार और अमल करने के आव्हान के भूमिका-स्वरुप है.

लेकिन इस आव्हान से पहले संक्षेप में यह देखते चले कि नारी दुर्गति, नारी-अपमान, नारी-शोषण के समाधान अब तक किये जा रहे हैं वे क्या हैं? मौजूदा भौतिकवादी, विलास्वादी, सेकुलर (धर्म-उदासीन व ईश्वर विमुख) जीवन-व्यवस्था ने उन्हें सफल होने दिया है या असफल. क्या वास्तव में इस तहज़ीब के मूल-तत्वों में इतना दम, सामर्थ्य व सक्षमता है कि चमकते उजालों और रंग-बिरंगी तेज़ रोशनियों की बारीक परतों में लिपटे गहरे, भयावह, व्यापक और जालिम अंधेरों से नारी जाति को मुक्त करा सकें???

आईये आज हम नारी को उसका वास्तविक सम्मान दिलाने की क़सम खाएं!

-सलीम ख़ान
swachchhsandesh@gmail.com

8 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

इन सबके लिए नारी का बहार निकलना जिम्मेदार नहीं, हम आदमियों की उनके प्रति गलत मानसिकता जिम्मेदार है
और तुम्हारे मेरे जैसे अच्छे आदमियों का उनका चुपचाप उत्पीडन होते देखना जिम्मेदार है |

Durga Datt Chaubey ने कहा…

बात तो आपकी सही है पर मेरी इस बारे में कुछ भिन्न एवं कठोर राय है।
जब तक हम नारी को अपनी दया के घेरे में रखेंगे तब तक नारी का उत्कर्ष संभव नहीं है। यह बात सिर्फ नारी के लिए नहीं बल्कि किसी भी इंसान के लिए है। सहयोग एक अलग विषय है। हमने पीढ़ी दर पीढ़ी 'नारी' शब्द को इतना विशिष्ट बना दिया है जैसे आपातकाल में हथियार के साथ कोई व्यक्ति।
हमने धर्मों या शालीनता, शील या यौन शुचिता के आड़ में यौन को इतना विशेष बना दिया है वही इन सब अराजकताओँ की जड़ है।
हम पुरुषों के निकर पहन कर खुले मैदान में कुश्ती लड़ते, कबड्डी खेलते देख सहज महसूस करते हैं किंतु महिलाओं को कुछ कम कपड़ों में असहज महसूस करने पर मजबूर करते हैं।
यह ध्यान देने की बात है कि यह असमानता केवल इंसानों में ही है।
मैं कहता हूँ कि जब हम भोजन करने की घटना को, श्वास लेने की घटना को, बात करने की घटना को, या ऐसी बहुत सी अन्य घटनाओं के प्रति सामान्य रहते हैं तो हमने यौन को इतना विशिष्ट, असहज घटना क्यों बना दिया है?
हाँ, इन सभी घटनाओं में भी यदि कोई सामने वाले व्यक्ति को मजबूर करता है तो निश्चित रूप से यह बलात्कार के समकक्ष है।
किंतु विडम्बना तो यह है कि आज हम बहुत ही सामान्य क्रिया कलापोँ को भी असामान्य ही बना दिया है।
एक बात गौर करने लायक है कि यौन शोषण जैसी घटनाएँ या बलात्कार मनुष्यों में ही होती हैं। वैसे तो बहुत सी बातें केवल मनुष्यों में होती हैं और उनके अपने दुष्परिणाम भी हैं।
हम वेश्यालयोँ या मीडिया को बीमारी का एक लक्षण मान सकते हैं बीमारी नहीं।
हममें से एक भी नहीं कह सकता कि वेश्यालयोँ के बाहर गलत यौन संबंध नहीं बनते। लेकिन यह 'गलत' शब्द ही बहुत सी गलत बातों (वेश्या एवं वेश्यालयोँ के लिए भी) के लिए जिम्मेदार है। और बलात्कार भी इनमें से एक है। 'ऑनर किलिँग' भी। शुचिता एक स्वतंत्र शब्द है लेकिन जब हम इसे दूसरे अन्य शब्दों के जोड़ते हैं वो भी किसी अन्य के संदर्भ में तो इसके अधिकतर गलत परिणाम ही मिलते हैं।
यौन शुचिता, पाक शुचिता जैसे शब्द विशुद्ध रूप से अपने लिए हैं।
मनुष्य की यह प्रवृत्ति है कि जहाँ भी उसके मार्ग में बाधाएँ आईं वहीँ उसने नए मार्ग एवं नई मंजिल प्राप्त किए इसके विपरीत जहाँ उसे बहुतायत या आजादी महसूस हुई वहीँ वह बोर (शायद मुझे इसका हिंदी शब्द मालूम नहीं) होने लगता है और उसमें त्याग की प्रवृत्ति जागृत होती है। भगवान महावीर, भगवान बुद्ध इसके उदाहरण हैं। अंगुलिमाल एवं महर्षि बाल्मिकि भी इसके उदाहरण हैं। जब तक यात्री डर कर भागते रहे वे लूटते रहे किंतु जैसे ही उनके समक्ष कोई खड़ा हो गया और उन्हें आमंत्रित करने लगा उन्हें वैराग हो गया। हम मनुष्यों के बचपन में भी यह प्रवृत्ति बहुतायत में देख सकते हैं। जबकि नारी का जो अर्ध नग्न रूप दिख रहा है वो भी एवं जो आज के युवाओं में यौन के प्रति बढ़ता आकर्षण है वो भी इसके परिणाम हैं। इसी का लाभ आज के व्यापारिक संस्थान ले रहे हैं। यौन के अतिरिक्त बहुत से अन्य मामलों में भी यही स्थिति है।
यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि यौन संबंधों के अतिरेक से बहुत सी समस्याएँ पैदा हुईं हैं लेकिन क्या हम मनुष्य के विकास की एक भी ऐसी घटना का उल्लेख कर सकते हैं जिनसे समस्याएँ न पैदा हुई हों? तो क्या यौन संबंधित मामलों में खुली छूट होनी चाहिए? मैं कहता हूँ कि छूट का मतलब यह नहीं है कि इसे प्रोत्साहन दिया जाए लेकिन हाँ, इसे अपने सुविधाओं के अनुसार परिभाषाओं के घेरे में न बाँधा जाए। यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य अवश्य है कि किसी पर बल पूर्वक यौन संबंध थोपा न जाए। जहाँ तक प्रश्न उसे बल पूर्वक रोकने का है यह भी एक अवांछनीय प्रवृत्ति है। यह एक सहज जैविक प्रक्रिया है एवं उसे इसी नजरिए से देखा जाना चाहिए।
मेरी धारणा यह है कि यह मनुष्य के विकास का एक दौर है एवं एक समय ऐसा आएगा जब हमें शरीर को किसी के नजरों से छिपाने के उद्देश्य से कपड़े पहनने की आवश्यकता नहीं रहेगी।

हरीश सिंह ने कहा…

साली भाई, एक घटना मैं आपको बताता हु. एक बार करीब ८ वर्ष पहले मैं डेल्ही जा रहा था. भदोही स्टेसन पर जिस डिब्बे में मैं बैठा उसी डिब्बे में लड़कियों का टूर रायबरेली जा रहा था. डिब्बे में मात्र एक मैं ही पुरुष था. उनके द्वारा बोली जा रही फब्तियों से मैं इस कदर तंग आ गया था की दिल कर रहा था कूद कर भाग जाऊ पर जाना मजबूरी थी. वे चार घंटे मैंने किस तरह बिताये मैं ही जानता हूँ. रहत तब मिली जब वे उतर गयी. आज तक उस घटना को भूल नहीं पाया, अच्छा था की दिन का समय था...... मेरे कहने का अभिप्राय है की जहा मौका मिलता है लडकिय भी कम नहीं होती.

हमारे धर्म शाश्त्रो में नारियो के लिए जो सीमाएं बनायीं गयी है उसे लांघने का कम उन्ही ने किया है. लिहाजा उसका परिणाम भी वही भोग रही है. आवश्यकता से अधिक औरतों में पनप रही लालसा उन्हें पथभ्रष्ट कर रही है. यदि कोई नारी आज भी मर्यादा का उलंघन नहीं करती तो किसी पुरुष की हिम्मत नहीं की उसे हाथ लगा दे. फिर भी आपकी बात में छुपी सच्चाई से मैं इंकार नहीं करता, पाश्चात्य सभ्यता ने हमर समाज पर असर डाला है. नारी और पुरुष दोनों एक दुसरे के पूरक है. जब तक दोनों की मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा तब तक बदलाव नहीं आएगा........

आपने जो आंकड़े दिए है वह निश्चय ही चिंताजनक है. विचार करना होगा.

एस एम् मासूम ने कहा…

अर्धनग्न औरतों का इश्तेहारों मैं इस्तेमाल अक्सर लोगों को लगता है औरत पे मर्द ज़ुल्म कर रहा है. लेकिन यह अर्धनग्न बाज़ारों मैं घूमती औरत कप क्या मर्द ज़बरदस्ती बहार ऐसी हालत मैं भेजता है?
सवाल यह है की ओर्तों को ही यह सब क्यों पसंद है और यदि है तो नतीजा यही होगा ..

हरीश सिंह ने कहा…

sahi kaha masoom bhai.

rubi sinha ने कहा…

घर के बाहर की जिम्मेदारी पुरुष और अन्दर की जिम्मेदारी नारी उठाती है, दोनों अपनी दिशा से भटक रहे हैं. यदि स्त्रियाँ बाहर निकलेगी तो घटनाएँ कैसे रुकेगी, और फी आप नारी को इतना कमजोर क्यों समझते है.

shyam gupta ने कहा…

एक दम सही व सत्य को उजागर करती तस्वीर है...यह पोस्ट...

--मासूम व रूबी जी के कमेन्ट व हरीश जी का अनुभव भी इसे एक दिशा देता है...
---बेनामी का कमेन्ट व अभिव्यक्ति की कहानी---घिसी-पिटी बातें है जो नारियों से लाभ उठाने वाले वर्ग का षडयंत्र है....

Abhishek ने कहा…

@मासूम & हरीश जी,
आप लोग किस दुनिया में जी रहे है और किसमे जीना चाहते है. किसी लड़की के साथ कुछ गलत होता है तो आप लोग लडकियों की गलती निकालने में लग जाते है. आप लोगो की बातो से तो लगता है लडको की गलतिया आप लोगो को दिखती ही नहीं है या शायद आप लोग देखना ही नहीं चाहते है. पश्च्यात संस्कृति ने हमारे समाज पर असर डाला है... क्या बलात्कार करना और लडकियों के छेड़ना पश्च्यात संस्कृति की देन है. अपनी गलतिया तो दिखती नहीं है और दूजो पर दोषारोपण शुरू कर देते है. मैं सिंगापूर में रहता हूँ और जितना खुला वातावरण यहाँ है उतना इंडिया में भी नहीं है किन्तु फिर भी यहाँ लड़के लडकियों पर न कोई भद्दे कमेंट्स देते है और मैंने कोई बलात्कार का मामला भी नहीं सुना है. पश्च्यात संस्कृति को गाली देना शायद आज कल लेखको का प्रिय विषय है. आज के टाइम में जितनी भी चीज आप लोग उपयोग करते है हाँथ की घडी से कंप्यूटर/लैपटॉप तक सब पश्च्यात संस्कृति की ही देन है. मेरा मानना है दुसरे समाज में गलतिया धुंडने से अच्छा है अपने समाज और संस्कृति की कमियों को दूर किया जाए.

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