बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

भ्रष्ट सरकार से कैसे करें ईमानदारी की उम्मीद

क्या आप जानते हैं कि स्विट्जरलैंड के बैंकों में भारत के नेताओं और उद्योगपतियों के कितने रुपये जमा हैं? आपको शायद विश्वास नहीं होगा, क्योंकि यह राशि इतनी बड़ी है कि हम पर जितना विदेशी कर्ज है, उसका हम एक बार नहीं, बल्कि 13 बार भुगतान कर सकते हैं। जी हां, स्विस बैंकों में भारत के कुल एक अरब करोड़ रुपये जमा हैं। इस राशि को यदि भारत के गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले 45 करोड़ लोगों में बांट दिया जाए तो हर इंसान लखपति हो जाए। अन्य बैंक जहां जमा राशि पर ब्याज देते हैं, वहीं स्विस बैंक धन को सुरक्षित रखने के लिए जमाकर्ता से धन लेते हैं। आज हमारे पास सूचना का अधिकार है तो क्या हम यह जानने का अधिकार नहीं रखते कि हमारे देश का कितना धन स्विस बैंकों में जमा है? क्या यह धन हमारे देश में वापस नहीं आ सकता? अवश्य आ सकता है। क्योंकि अभी नाइजीरिया यह लड़ाई जीत चुका है। नाइजीरिया के राष्ट्रपति सानी अबाचा ने अपनी प्रजा को लूटकर स्विस बैंक में कुल 33 करोड़ अमेरिकी डॉलर जमा कराए थे। अबाचा को पदभ्रष्ट करके वहां के शासकों ने स्विस बैंकों से राष्ट्र का धन वापस लाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी। जब नाइजीरिया के शासकों ने ऐसा सोच लिया तो हमारे शासक ऐसा क्यों नहीं सोच सकते? स्विस बैंकों से धन वापस निकालने की तीन शर्ते हैं। पहली, क्या वह धन आतंकी गतिविधियों को चलाने के लिए जमा किया गया है? दूसरी, क्या वह धन मादक द्रव्यों के धंधे से प्राप्त किया गया है और तीसरी, क्या वह धन देश के कानून को भंग करके प्राप्त किया गया है? इसमें से तीसरा कारण है, जिससे हम स्विस बैंकों में जमा भारत का धन वापस ले सकते हैं, क्योंकि हमारे नेताओं ने कानून को भंग करके ही वह धन प्राप्त किया है। हमारे खून-पसीने की कमाई को इन नेताओं ने अपनी बपौती समझकर विदेशी बैंकों में जमा कर रखा है, उसका इस्तेमाल हमारे ही देश की भलाई में होना चाहिए। आज आम आदमी की थाली जो कुल मिलाकर छोटे किसान और खेतिहर मजदूर की भी थाली है, खुद खाने वालों को खा रही है, जबकि सरकार का आकलन है कि लोग न केवल पहले की तुलना में ज्यादा खाने लगे हैं, बल्कि पहले से अच्छा भी खाने लगे हैं। खाने-पीने के सामान की कीमतों में वृद्धि रोकने में एकदम नाकाम सरकार इसी तरह के जख्म पर नमक छिड़कने वाले जवाब देकर अपने हाथ खड़े कर देती है। इसका मतलब यह है कि किसान तो भयावह हालात के बावजूद ज्यादा पैदा करके दिखला रहा है, मगर हाथ पर हाथ धरकर बैठी सरकार न तो यह सुनिश्चित कर पा रही है कि किसान को उसकी मेहनत का पूरा पैसा मिले और न ही यह कि जनता को उचित दर पर खाने-पीने का सामान मिले। इसलिए यह पूछना आवश्यक है कि इस बढ़ी हुई उपज दर के लाभों को बीच में कौन हड़प ले रहा है? सरकार उपदेश देती है कि लोग रोटी के साथ अब दाल और सब्जियां भी खाने लगे हैं और दूध-दही का उपभोग भी ज्यादा करने लगे हैं, इसलिए इन तमाम चीजों का उत्पादन भी बढ़ाया जाना चाहिए, सिर्फ खाद्यान्न का ही नहीं। मगर वह एक बार भी यह यकीन नहीं दिलाती कि पैदावार बढ़ेगी तो कीमतें घटेंगी। पैदावार बढ़ने पर सरकार निर्यात करके पैसा बनाने की सोचती है और फिर कमी होने पर उसी जींस का आयात करने लगती है, जैसा चीनी के मामले में हुआ। बहरहाल, आज नेताओं में धन को विदेशी बैंकों में जमा करने की जो प्रवृत्ति बढ़ रही है, उसके पीछे हमारे देश का कमजोर आयकर कानून है। इसी आयकर से बचने के लिए ही तो ये नेता, अधिकारी और भ्रष्ट लोग अपने धन को काले धन के रूप में रखते हैं। यदि आयकर कानून को लचीला बना दिया जाए तो इस पर अंकुश लगाया जा सकता है। अभी हमारे देश में 10 लाख करोड़ रुपये काले धन के रूप में प्रचलित है। इस दिशा में कोई भी पार्टी कानून बनाने की जहमत नहीं उठाएगी, क्योंकि यदि किसी पार्टी ने इस दिशा में जरा भी हरकत की तो विदेशी कंपनियां उसे सत्ताच्युत कर देंगी। ये कंपनियां हमारे नेताओं को अपनी उंगलियों पर नचा रही हैं। यदि प्रजा जागरूक हो जाती है और नेताओं को इस बात के लिए विवश कर सकती है कि वह स्विस बैंकों में जमा भारतीय धन को वापस ले आएं तो ही हम सब सही अर्थो में आजाद देश के नागरिक माने जाएंगे। इस धन के देश में आ जाने से न तो हमें किसी से भीख मांगने की आवश्यकता होगी और न ही हमारा देश पिछड़ा होगा। इस धन की बदौलत भारत का नाम पूरे विश्व में एक विकसित देश के रूप में गूंजेगा। आज इस देश को शक्तिशाली और ईमानदारी नेतृत्व की आवश्यकता है।
आभार-स्वतंत्र टिप्पणीकार महेश परिमल

3 टिप्पणियाँ:

saurabh dubey ने कहा…

आपका बहुत धन्यवाद की आपने मुझे अपने परिवार का सदस्य समझा ,पर मुझे आपकी एक बात अच्छी नही लगी।की आपने मुझे अपने से बड़ा बता दीया,मै तो आपसे बहुत छोटा हूँ।अभि तो मेरी सीखने की उम्र हैं।जो कुछ भी गलती हो उसे बताईयेगा और मै उसे सुधारने की कोशिश करुंगा।
फिलहाल अभि तो मेरी हिन्दी की मात्राएँ कुछ गलती हो रही हैं।मै इसे सुधारने की कोशिश कर रहा हूँ।अच्छी रचना।

हरीश सिंह ने कहा…

सौरभ जी व्यक्ति के भाव अच्छे होने चाहिए, विचार सुन्दर होने चाहिए, सोच बड़ी हो, यहाँ पर हम सभी बराबर हैं. हम चाहते है की इस परिवार के सदस्यों में इतना प्यार हो की एक दुसरे से मिले बिना भी आपसी जुडाव का एहसास करें. ताकि जब कभी मुलाकात हो तो यह नहीं लगे की पहली बार मिल रहे है.

shyam gupta ने कहा…

सही कथन हरीश जी---आयकर को और अधिक लचीला व स्पष्ट, सरल नियमवाला होना चाहिये..
--आख्र आयकर बचाने का नियम ही क्यों होना चाहिये, क्यों सरकार आयकर बचाने को प्रश्रय देती है, इसी से समस्त भ्रश्टाचार को बढावा मिलता है....आयकर से बचे हुए जमा धन से सरकार अपनी योजनायें चलाना चाहती है ...तो आयकर से प्राप्त धन से क्यों नहीं....खैर यह ज़टिल बात है ...उत्तम पोस्ट के लिये बधाई....

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