सोमवार, 3 मार्च 2014

आखिर क्यों राजनीति में आ रहे हैं अफसर ?

नौकरशाहों का राजनीति में आना क्या जायज है ..ऐसे ना जाने कितने सवाल मेरे मन में आ रहे हैं..इसके लिए क्या वर्तमान राजनीतिक हालात जिम्मेदार हैं या फिर कोई और कारण...नौकरशाहों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से भी इनकार नहीं किया जा सकता..। अभी तक राजनीति में डॉक्टर और वकीलों का ही वचस्व रहा है। लेकिन एकाएक आईएएस और आईपीएस रैंक के अधिकारी भी शामिल हो रहे हैं..यहीं नहीं सेना के बड़े अफसर और देश की सियायत में खुफिया विभाग के अधिकारी भी उतरें तो लोग सोचने पर मजबूर होंगे ही... पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह और रॉ के पूर्व प्रमुख संजीव त्रिपाठी बीजेपी का दामन थाम चुके है..। अब सुनने में आ रहा है कि देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी भी जल्द ही बीजेपी का भगवा रंग धारण कर सकती है.. वैसे भी किरण बेदी का बीजेपी प्रेम किसी से छिपा नहीं है। .. संजीव त्रिपाठी पहले विदेशों में जासूसी करने वाली खुफिया एंजेसी रॉ के प्रमुख के तौर पर देश के दुश्मनों की हरकत पर नजर रखते थे अब बीजेपी में आकर विपक्षी दलों के नेताओं पर नजर रखेंगे..। पहले सेना में रहकर वीके सिंह देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी देख रहे थे अब मोदी के सारथी बनकर बीजेपी के मिशन २०१४ के लक्ष्य को आसान बनाने की कोशिश करेंगे....ये लोग देश में चल रही कांग्रेस विरोधी लहर में अगर लोकसभा भी पहुंच जाएं तो कोई ताजुब नहीं...। पिछले कुछ महीनों पहले पूर्व केंद्रीय गृहसचिव आरके सिंह, पूर्व पेट्रोलियम सचिव आरएस पांडेय और मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे सत्यपाल सिंह नौकरी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं..बीजेपी इन नौकरशाहों को चुनावी रण में उतारेगी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। इन नौकरशाहों को लगता है कि देश में चल रही नरेंद्र मोदी की लहर में वे भी सांसद बन जाएंगे..। ये लोग बीजेपी में शामिल होने से पहले कोई शर्त भी ऱखी होगी...हो सकता है मंत्री बनने के लिए लॉबिंग भी करवाएं..क्योंकि नेता जब चुनाव जीत जाते हैं तो उनकी नजर सबसे पहले मंत्री पद ही जाकर रुकती है.. इन्ही नौकरशाहों को देखकर और भी अफसर राजनीतिक अखाड़े में कूद सकते हैं..पार्टी कोई भी हो सकती है.. जो अफसर राजनीति में आने की सोच रखता होगा उसे नेताओं का तोता तो बनना ही पड़ेगा..ऐसे में राजनीतिक सोच वाले अफसर ईमानदारी से काम करते होंगे इसमें शंका ही है.... अगर निष्पक्ष तरीके से काम करने वाला अफसर नेताओं और मंत्रियों की नहीं सुनेगा तो हरियाणा में अशोक खेमका और उत्तर प्रदेश में दुर्गा शक्ति नागपाल की तरह उसका हाल होगा..जो बहुत कम ही अफसर चाहेंगे..। सताया हुआ अफसर अगर राजनीतिक दल से जुड़ेगा तो जाहिर है बदला लेने की कोशिश करेगा..ऐसे में सरकारी गोपनीय दस्तावेजों की जानकारी भी लीक हो सकती है...अगर राजनीतिक महत्वाकांशा वाला अफसर नेताओं के इशारे पर काम करेगा तो जाहिर है सरकारी खजाने की बंदरबांट होगी और साथ ही लोगों की हितों की अनदेखी भी । इन दोनों हालातों में अफसरों का रवैया देशहित में नहीं है..अगर ऐसा है तो यह सचमुच देश के लिए अच्छी खबर नहीं है.. मैं ये बातें इसलिए कह रहा है कि बीजेपी में शामिल होने वाले अफसर ज्यादार कांग्रेस शासन काल के ही हैं..पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह के उम्र विवाद को कौन भूल सकता है..। संजीव त्रिपाठी दिसंबर २०१० से दिसंबर २०१२ तक देश की सबसे बड़ी खुफिया एंजेसी रॉ के प्रमुख रहे। मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे सत्यपाल सिंह भी कांग्रेस शासन काल में ही पुलिस विभाग में बड़े पद पर रहे..ये बताने की जरुरत नहीं है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी की गठबंधन सरकार है..हो सकता है सत्यपाल सिंह कांग्रेस नेताओं के सताए हुए हों क्योंकि उन्होंने पुलिस कमिश्नर जैसे बड़े पद से इस्तीफा देकर बीजेपी के पाले में गए..पूर्व केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह और पूर्व पेट्रोलियम सचिव आरएस पांडेय बेशक नौकरी से रिटायर होकर बीजेपी में शामिल हुए लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया सकता कि उन्हें भी कांग्रेस सरकार में उन्हें परेशान नहीं किया गया होगा । आरके सिंह ने तो बाकायदा बीजेपी ज्वाइन करने के बाद केंद्र सरकार पर हमला बोला..उन्होने केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार पर सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप करने का आरोप भी लगाया था..आरके सिंह ने तो सुशील कुमार को केंद्रीय गृहमंत्री लायक नहीं होने तक कह दिया था.. बीजेपी से जुड़ने के बाद सिंह ने स्वीकार किया कि गृह सचिव का पदभार संभालने के कुछ ही महीनों बाद से ही सुशील कुमार शिंदे से उनके मतभेद शुरू हो गए थे। ऐसा माना जाता है कि सभी सरकारें अपने पसंदीदा अफसर को ही बड़े पद पर बैठाती हैं...जिससे उनसे मन मुताबिक काम लिया जा सके..वैसे भी नेताओं और अफसऱों की जुगलबंदी से भ्रष्टाचार में इजाफा हुआ है ये जग जाहिर है..संयोग से कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में ही कई बड़े-बड़े घोटाले हुए हैं..अगर प्रदेशों की बात करें तो जहां भी सबसे अधिक भ्रष्टाचार हुए हैं वहां पर सत्ताधारी दल और बड़े-बड़े अफसरों की मिली भगत सामने आई है..ये बातें जांच एजेंसियों से साबित भी हो चुकी हैं..चाहे यूपी में बसपा सरकार के शासनकाल में घोटाले रहे हों या फिर महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार रही हो या फिर कर्नाटक में येदियुरप्पा के नेतृ्त्व वाली बीजेपी सरकार रही हो.। सभी विभागों में मंत्रियों और नेताओं के साथ अफसरों की भ्रष्टाचार में सबसे अहम भूमिका रही है..अगर उद्योगपतियों की बात की जाए तो नेताओं की मिली भगत से ही महंगाई में आग लगी है...जिसकी तरफ आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी समय-समय पर सवाल उठाते रहे हैं.. अगर इन हालातों में कोई अफसर ईमानदारी बरतेगा तो उसे प्रताड़ित तो होना ही पड़ेगा..लेकिन राजनीति में आकर फिर उसी दलदल में शामिल हो या बात समझ में कम आती है ..मै किसी पार्टी या फिर अफसर से नेता बने इन लोगों पर कोई आरोप नहीं लगा रहा हूं..और ना ही ऐसी कोई मेरी मंशा ही है... लेकिन देश की जनता को यह पता होना चाहिए आखिर एकाएक अफसर राजनीति में क्यों आ रहे हैं..यदि विपक्षी पार्टी में शामिल हों तो शक और गहरा जाता है..आखिर राजनीति में आकर अफसर क्या संदेश देना चाहते हैं।

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