रविवार, 3 मार्च 2013

तोप, हेलीकॉप्टर और यूपीए का इटली कनेक्शन

( “पोल इंडिया ” पत्रिका के मार्च 2013 अंक में प्रकाशित लेख) मंगल यादव इन दिनों यूपीए सरकार का एक और घोटाला सुर्खियों में है। इस बार वीवीआईपी हेलीकॉप्टर सौदे में घोटाले ने देश को झकझोर कर रख दिया। दरअसल इस मामले ने भारत में तब तूल पकड़ा जब अगस्ता वेस्टलैंड की मूल कंपनी फिनमैकेनिका के सीईओ इटली में गिरफ्तार हुए। इटली से अतिविशिष्ट लोगों के लिए हेलीकॉप्टर का सौदा 3700 करोड़ में हुआ था। इटली जांच अधिकारियों के मुताबिक सौदे में तकरीबन 370 करोड़ का घोटाला हुआ है। इस घोटाले में विदेशी और भारतीय दलालों तथा अधिकारियों का नाम शामिल बताया जा रहा है। मामले को तूल पकड़ते देख घबराई यूपीए सरकार ने आनन-फानन में हेलीकॉप्टर सौदे में कथित घोटाले की जांच सीबीआइ को सौंप दी है। मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा इस घोटाले को जहां इटली कनेक्शन औऱ बोफोर्स घोटाले से जोड़कर देख रही है वहीं सत्तारुढ़ पार्टी कांग्रेस जांच के नाम पर पल्ला झाड़ रही है। बहरहाल जो भी हो सीबीआइ जांच इस घोटाले में कहां तक आगे बढ़ पाती है ये तो समय ही बताएगा लेकिन सीबीआइ अभी तक किसी भी बड़े घोटाले में किसी को सजा दिलवाने में नाकाम जरुर रही है। अक्सर बड़े घोटालों में बड़ी मछलियां सीबीआइ के शिकंजे में नहीं आ पाती। सीबीआइ या तो राजनीतिक दबाव का शिकार हो जाती है या फिर पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव को बड़ी मछलियों को अपने जाल में फंसाने में नाकाम साबित होती हैं। सवाल उठता है क्या हेलीकॉप्टर सौदे की सीबीआइ जांच का भी हश्र वही होगा जो बोफार्स घोटाले का हुआ था। बोफार्स, डेनेल और बराक मिसाइल खरीद समेत कई घोटालों की लंबी लिस्ट ऐसी है जिनके आखिरी मुकाम तक सीबीआइ नहीं पहुंच सकी है। दस साल की लंबी जांच के बाद बोफार्स घोटाले में सीबीआइ ने आरोप पत्र तो दाखिल कर दिया लेकिन उसके आधार पर एक भी आरोपी को सजा नहीं दिलवा पायी। घोटाले के मुख्य सूत्रधार औऱ प्रमुख आरोपी आक्तोवियो क्वात्रोची के खिलाफ खुद सीबीआइ ने 2010 में केस वापस ले लिया। इस मामले में आरोपी हिन्दुजा बंधुओं के खिलाफ सीबीआइ के सबूतों के आधार को नाकाफी बताते हुए दिल्ली हाइकोर्ट ने पहले ही खारिज कर दिया था। सीबीआइ और रक्षा मंत्रालय के अधिकारी इटली से कितने सुबूत इकट्ठा कर पाते हैं इसके बारे में अभी से कुछ भी कहना मुश्किल है लेकिन इतना तो तय है इस मामले में जांच अधिकारियों को कुछ भी ठोस दस्तावेज मिलने के आसार दिख नहीं रहे हैं। वीवीआइपी हेलीकॉप्टर घोटाले में फिलहाल अभी सीबीआइ को इटली से कोई भी सुबूत मिलने वाला नहीं है जिसके आधार पर कोई एफआइआर दर्ज किया जा सके। कानूनी बंदिशों का हवाला देते हुए इटली की अदालत ने घोटाले से जुड़ा कोई भी दस्तावेज देने से मना कर दिया है। भारतीय दूतावास को भेजे पत्र में अदालत ने कहा है कि उनके अनुरोध पर सकारात्मक जवाब देना अभी संभव नहीं है। इतालवी न्यायाधीश ने कहा कि अभी जाँच की प्रक्रिया प्रारंभिक स्तर पर है और इस दौरान दंड संहिता के अनुच्छेद 329 के मुताबिक इसके तहत प्रारंभिक जांच के सभी दस्तावेज व जानकारियां गोपनीय होती है। सरकार किसी भी सौदे में पारदर्शिता बरते जाने का बार-बार दावा करती है। कोई भी बड़ा फैसला लेने से पहले मामले से जुड़े लोगों को बड़े अधिकारियों और संबंधित मंत्रालयों से मंजूरी लेना होता है। कई स्टेप से होते हुए किसी भी चीज की खरीद-फरोख्त संभव हो पाती है। फिर भी इतने बड़े घोटाले हो जाते हैं। विश्वास नहीं होता कैसे दलाल प्रभावशाली मंत्रियों और अधिकारियों से संपर्क बना लेते हैं। फिर मोटी रकम रिश्वत में देकर सरकार और देश को चूना लगा देते हैं। बोफार्स घोटाले की तरह इस घोटाले में भी बड़े बिचौलिये की भूमिका हो सकती है। ये वे लोग हो सकते है जो सरकार में अपनी बड़ी पैठ रखते हैं। इस घोटाले में पूर्व वायुसेना प्रमुख एस.पी त्यागी का नाम भी जोड़ा जा रहा है। इटालियन जांच एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक त्यागी ने न सिर्फ ऑगस्टा वेस्टलैंड के लिए टेंडर की शर्त बदलवाई बल्कि टेंडर में कंपनी की तरफ से जाने वाली तकनीकी बिड को भी आखिरी रूप दिया। हांलाकि एसपी त्यागी हेलीकॉप्टर सौदे में अपनी किसी भी भूमिका से इनकार किया है। त्यागी ने सौदे की सारी प्रक्रिया को पीएमओ से संचालित होने की ओर इशारा किया है। वीवीआइपी हेलीकॉप्टर घोटाले में देश के एक बड़े घराने का नाम भी जोड़ देखा जा रहा है। क्योंकि इटली के कोर्ट में दायर आरोप पत्र में द फेमली नाम का जिक्र है। इस फेमली को बतौर रिश्वत दो सौ करोड़ दिए जाने का किया गया है। यह कौन सा बड़ा घराना है ये तो जांच एजेंसियां ही जांच के बाद बताएंगी लेकिन ये तो सच है इस घोटाले में किसी न किसी बड़े नेता की भूमिका जरुर है। जिसने बड़े शातिर तरीके से देश को करोड़ों का चूना लगाया। विदेशी दलालों से बंदर बांट इस तरीके से मची कि करीब 370 करोड़ रुपए डकार गए और किसी को भनक तक नहीं लगी। बोफोर्स घोटाले में यह सर्वविदित था कि 64 करोड़ रुपए की रिश्वत खाई गई थी। ठीक उसी प्रकार हेलीकॉप्टर सौदे के लिए साढ़े तीन अरब से अधिक के रिश्वत को सभी लोग स्वीकार कर लेगें। दिलचस्प बात ये है कि बोफोर्स में रिश्वत देने वाले का नाम पता चल चुका था लेकिन किसने लिया किसी को पता नहीं चला। ठीक उसी प्रकार से हेलीकॉप्टर घोटाले में भी रिश्वत देने वाले का नाम का भी पता चल चुका है लेकिन रिश्वत किसे दी गई ये बात न तो अभी पता चल पाई है और न ही पता लगने की उम्मीद दिख रही है। दुर्भाग्य की बात है बोफोर्स घोटाले के समय कांग्रेस की सरकार थी औऱ इस समय भी उसी की सरकार है। ये बात अलग है बोफोर्स घोटाले के बाद कांग्रेस को कई साल तक केंद्र की सत्ता से दूर रहना पड़ा। कितनी बड़ी बिडंबना है कि रिश्वत देने वाले को इटली में गिरफ्तार कर लिया गया। जबकि रिश्वत लेने वाले का अभी तक पता नही चल पाया है। इस घोटाले का भंडाफोड़ इटली में साल भर पहले ही हो चुका था। लेकिन भारत सरकार अभी भी गहरी नींद में सोई हुई है। ऐसा नहीं है सरकार को इससे पहले किसी ने जानकारी नहीं दी। इस घोटाले से जुड़े मामले को भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद संसद में उठा भी चुके थे। इससे जुड़े मामले में सरकार तब जागी जब इटली में इस घोटाले से जुड़े लोग गिरफ्तार हो गए। मीडिया में घोटाले ने तूल पकड़ा। सवाल कई तरह के मन में आते हैं- क्या देश की सुरक्षा और जांच एजेंसियां इतनी कमजोर हैं कि इटली से दलाल भारत आए औऱ इतने बड़े घोटाले को अंजाम देकर चले गए। दलाल देश के विशिष्ट लोगों से मिले और एजेंसियों को हवा तक नहीं लगी। जब अतिविशिष्ट लोगों के लिए हेलीकॉप्टर के सौदे में इतनी बड़ी सौदेबाजी को विदेशी दलाल अंजाम दे गए तो और चीजों के सौदेबाजी मे क्या हाल होता होगा इसे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

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