मंगल यादव, नई दिल्ली आजकल राष्ट्रीय राजनीति गरम है। गरम भी क्यों ना हो सर्दी जो आ गई। अगर लोग खुद को लोग सुर्खियों में नहीं रखेंगे तो ठंड लग जाएगी। ठंड लगने से राजनीति में उथल-पुथल शुरु हो जाएगा। इसलिए कई राजनीतिक दल रैलियां कर रहे हैं। वहीं कुछ सामाजिक कार्यकर्ता नेताओं औऱ उद्योगपतियों के पोल खोल रहे हैं। पोल खोल अभियान कब तक चलेगा आप देखते जाइए। देश की राजनीति में प्रवेश कर रहे हैं अरविंद केजरीवाल, ऐसे में सुर्खियों में बने रहना जरुरी भी है। क्योकि 2013 में दिल्ली समेत कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। वैसे मुख्य रुप से केजरीवाल की नजर 2014 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव पर लगी होगी। जो केजरीवाल के राजनीतिक दशा और दिशा दोनों तय करेगा। वैसे तो लोकसभा चुनाव की संभावना 2014 से पहले लग रही है। इसलिए विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने गढ़ में जनता का विश्वास जीतने का प्रयास कर रहे हैं। केंद्र सरकार में सारथी की भूमिका निभाने वाले मुलायम सिंह यादव को ही ले लो, वे तीसरा मोर्चा बनाने पर तुले हुए हैं। गैर कांग्रेसी और गैर बीजेपी सरकार में पीएम बनने का ख्वाब मन में सजाए बैठे हैं। आये दिन नेता जी का बयान आता रहता है कि लोस चुनाव कभी भी हो सकते हैं। समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता तैयार रहें। अब मुलायम सिंह से कौन पूछे कि जब कांग्रेस सरकार जाने वाली होती है तब आप ही तो बीच में आकर खड़े हो जाते हो। कैसे सरकार गिरेगी औऱ लोकसभा चुनाव होंगे। माना आप जनता पर महंगाई का बोझ नहीं लादना चाहते लेकिन सरकार जब पेट्रोल, डीजल और गैस जैसी मूलभूत चीजों के दामों में बढ़ोत्तरी करती है तो क्यों नही सरकार को दबाव में ले आते। क्यों नही ममता बनर्जी जैसी कदम उठाते मुलायम सिंह। कुछ राजनीतिक जानकर यहां तक कह रहे हैं दिनों-दिन बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार कांग्रेस सरकार को ग्रस ना ले। अगर ऐसा होता है तो मायावती और मुलायम सिंह को भी नुकसान उठाना पड़ेगा, उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में भी। क्योंकि माया और मुलायम को भी उसी जनता के बीच जाना है जहां कि जनता महंगाई से कराह रही है। ऐसे में आगे भी इन दोनों पार्टियों का साथ कांग्रेस को मिले कहा नहीं जा सकता। इसमें अचरज नहीं बसपा और सपा दोनों कांग्रेस से दूरी बना लें जैसे-जैसे लोस चुनाव नजदीक आ रहा है। सुना है अरविंद केजरीवाल आजकल बहुत खुलासे कर रहे हैं। कभी मुख्य विपक्षी दल भाजपा अध्यक्ष पर तो कभी बीजेपी और कांग्रेस में सांठगांठ की बात को साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। अभी तक अरविंद का लगातार निशाना कांग्रेस और कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार पर रहा है। कभी भ्रष्टाचार तो कभी उद्योगपतियों से सांठगांठ को हथियार बनाकर केजरीवाल सरकार और कांग्रेस की पोल खोलने से नहीं चूक रहे हैं। जिस तरीके से अरविंद केजरीवाल खुलासा कर रहे हैं और यदि उनके खुलासे में सच्चाई है तो निश्चित रुप से देश गर्त में जा रहा है। और वह दिन दूर नही जब जनता अपनी हक की लड़ाई के लिए कोई बड़ा आंदोलन करेगी। और देश में राजनीतिक पार्टियों पर से जनता का विश्वास उठ जाए। केजरीवाल ने बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी और सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के बाद जिस तरह से उद्योगपति मुकेश अंबानी पर खुलासा किया है उससे तो यही लगता है कि सरकार और उद्योगपति देश की जनता को बेवकूफ बनाकर लूट रहे हैं। औऱ सीधी-साधी मासूम जनता सरकार के झांसे में आकर लुट रही है। अरविंद केजरीवाल ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के दामाद रंजन भट्टाचार्य और मुकेश अंबानी के बीच हुई वार्तालाप की जो ऑडियो पत्रकारों को सुनाई उससे तो साफ जाहिर होता है कांग्रेस सरकार उद्योगपति मुकेश अंबानी के जेब में है। देश के ज्यादातर नेता करोड़पति हैं। नेताओं के पास कंपनियों की भी भरमार है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी-अपनी किस्मत आजमा रहे 445 उम्मीदवारों में 33 प्रतिशत यानी 146 उम्मीदवार करोड़पति हैं। जिन्होंने चुनाव आयोग के यहां बकायदा शपथ देकर खुद को करोड़पति बताया है। सवाल उठता है करोड़पति नेता गरीब जनता के दुख को कितना सुनते होंगे। मालामाल नेताओं और एनजीओं के माध्यम से ब्लैकमनी करने वाले लोगों में से किसकी-किसकी पोल खोलेंगे अरविंद केजरीवाल। क्या केजरीवाल कांग्रेस का साथ देने वालों का क्या पोल पायेंगे, किसी ने कहा, नोएडा के एक चाय की दुकान पर बैठे कुछ बुद्धजीवियों से। अगर पोल खोलेंगे तो कब खोलेंगे इसमें कौन सा राजनीतिक बखेड़ा खड़ा होगा देखने वाली बात होगी। राजनीतिक गलियों में चर्चा है कि केजरीवाल की बातों पर ध्यान ना दिया जाए। क्या किसी पर ध्यान ना देने से क्या वास्तविकता बदल जाएगी, नहीं ना। अच्छा तो यही होगा नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को खुद को शीशे में देखना चाहिए। अरविंद केजरीवाल जनता के बीच जाकर राजनेताओं की असिलियत का पोल खोलकर क्या जनता का दिल पाएंगे। मुझे तो संशय लगता है। क्योंकि जनता को यही लगता है कि चुनाव लड़ने वाले हर नेता एक-दूसरे की आलोचना करते हैं। अरविंद अब राजनीति में आ गए हैं उनकी बात को जनता कितना समझती है। ये तो आने वाले समय में सब कुछ पता चल जाएगा। राजनीति के इस दौर में एक सामाजिक कार्यकर्ता राजनीति नहीं कर सकता। क्योंकि राजनीति में वो सब कुछ करना पड़ता है जिसे आप नहीं करना चाहते। सभी को साथ लेकर चलना होता है। चुनाव में पैसों की बहुत जरुरत होती है। ये बात भी जनता के दिमाग में कौधती रहेगी। कुछ उद्योगति मीडिया पर ब्लैकमेंलिंग का आरोप लगा रहे हैं। हर जगह लूट-खसोट मचा हुआ है मुनाफाखोरी के इस दौर में। सामाजिक कार्यकर्ता से नेता बने अरविंद केजरीवाल किसकी-किसकी पोल खोलेंगे। ब्लॉक, जिला और प्रदेश स्तर पर कहां-कहां पोल खोलेंगे अरविंद केजरीवाल।
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