मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

प्रेम काव्य ... नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार (क्रमश:) -रचना-२ .... डा श्याम गुप्त




              प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है-- नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार ----इस सुमनांजलि में आठ  रचनाएँ ......देवानुराग....निर्गुण प्रतिमा.....पूजा....भजले राधेश्याम.....प्रभुरूप निहारूं ....सत्संगति ...मैं तेरे मंदिर का दीप....एवं  गुरु-गोविन्द .....प्रस्तुत की जायेंगी प्रस्तुत है द्वितीय रचना ....
...निर्गुण प्रतिमा....
 
देव दर्शन किये, धर्म ग्रंथो को पढ़ ,
पूजा अर्चन को, मंदिर में जाते रहे ।
तीर्थों में फिर,   मंदिर-मंदिर गए,
शंख, घंटे, मंजीरे  बजाते  रहे।।
 
धर्म क्या है?ये क्यों?ये दर्शन है क्या?
मंदिरों में क्यों पूजा करते हैं हम ?
एक पाहन की गढ़ के प्रतिमा कोई,
क्यों मंदिर में उसको सजाते हैं हम ?
 
वो निर्गुण है, उसका कोई रूप क्या,
जों कण-कण में उसका कोई रूप क्या ?
सबके मन में औ सारे भुवन में बसा,
क्यों फिर उसकी मूरत बनाते हैं हम ?
 
यूं तो उत्तर बहुत सारे मिल जायेंगे ,
प्रश्न ही सारे उनमें उलझ जायेंगे।
भक्ति की भाव-सुरसरि की पावन महक,
उर बसे, सारे ही हल निकल आयेंगे ।
 
यही सच है कि निर्गुण है कण-कण बसा,
है बसा मन में, सारे भुवन में बसा ।
जो हैं ज्ञानी, निर्गुण को हैं जानते ,
जो कण-कण में है उसको पहचानते।
 
ज्ञान का तो पथ दुर्गम,कठिन है बड़ा,
राह में बाधा बनके, अहं है खडा । 
भक्ति का मार्ग सीधा सहज औ सरल,
दास बन जाता है भक्त, अरदास कर ।
 
दास का है अहं से न नाता कोई,
नष्ट होता अहं भक्त बनता है तब।
भाव को कर्म में ढाल सेवा के हित,
भक्त स्वामी की मूरत गढ़ता है तब ।
 
वो चरण पादुकाएं रघुनाथ की,
मानकर राम और जानकर जानकी।
साधना की भरत ने थी चौदह बरस,
नित्य करते रहे राम और सिय दरस ।
 
भक्ति प्रभुभाव और दास्य भी भाव-प्रभु,
भावना में ही प्रभु को पायें जो हम।
प्रिय की प्रिय वस्तु की ही जो पूजा करें ,
भावना में ही प्रिय को यूं पाजायें हम ।
 
है भला कौन क्या सारे संसार में,
जिसको प्रिय ईश ने हो बनाया नहीं ।
किसकी पूजा करें ,किसकी न हम करें,
एसा प्रभु ने कभी तो बताया नहीं ।
 
मनाकर प्रभु है बसता,अखिल विश्व में,
और संसार को मानकर प्रभु में हम।
एक मन भावनी निर्गुन मूरत बना,
बस मंदिर में उसको सजा देते हम ।
 
पूजा क्या और क्यों मंदिर जाते हैं हम?
कोई मूरत ही क्यों सजाते हैं हम ?
 
  
 
       
 
 
 
 
 
 

0 टिप्पणियाँ:

Add to Google Reader or Homepage

 
Design by Free WordPress Themes | Bloggerized by Lasantha - Premium Blogger Themes | cna certification