चूँकि चोरासिवे ओस्कर समारोह बीत चुके है है और उसकी चकाचौंध कुछ दिनों तक दर्शकों के जेहन में तेरती रहेगी , लिहाजा इसी बहाने ओस्कर पुरुस्कारों की बात करना प्रासंगिक है . लेकिन पहले विदेशी फिल्म श्रेणी के लिए चयन प्रक्रिया समझ ली जाए . क्योंकि यही एक श्रेणी है जहा हमारे लिए गुंजाइश बनती है , वर्ना ओस्कर तो सिर्फ और सिर्फ अमेरिकेन फिल्मों के लिए है . ओस्कर अकादमी द्वारा समस्त फिल्म निर्माण करने वाले देशों को विधिवत निमंत्रण भेजे जाते है . उनसे आग्रह किया जाता है कि 3 ओक्टोबर के पहले अपनी फिल्म की प्रविष्टिया ओस्कर समिति को भेज दे साथ ही फिल्म का उससे पूर्व उस देश में प्रदर्शन जरुरी होता है . ओक्टोबर से लेकर जनवरी तक समस्त भेजी गई फिल्मों को ओस्कर अकादमी के तक़रीबन छे हजार सदस्यों द्वारा देखा जाता है . सर्वश्रेष्ठ पांच फिल्मों को प्रतियोगिता खंड के लिए भेजा जाता है जिसमे से सदस्य वोटिंग के माध्यम से एक को चुनते है .
इस बरस मात्र तिरसठ देशों ने अपनी फिल्मे ओस्कर के लिए भेजी थी . भारत की और से मलयालम फिल्म ''अबू , सन ऑफ़ अडम'' भेजी गई थी परन्तु उसके लिए भारत की और से कोई प्रयास नहीं किये गए . इसलिए यह फिल्म चर्चा में भी नहीं आई और न हीं नामांकन प्राप्त कर सकी . चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता बेमिसाल है . इसका सबसे सुन्दर उदाहरण इरानी फिल्म '' सेपरेशन '' का ओस्कर जीतना है. राजनेतिक स्तर पर अमेरिका और इरान के बीच परमाणु मसले पर तलवार खींची हुई है . ऐसे में दुश्मन देश की फिल्म को सर्वश्रेष्ठ चुनना अकादमी के निष्पक्ष सोच को रेखांकित करता है. प्रतियोगी देश अपनी फिल्मो के लिए जबरदस्त लोबिंग करते है . इसका भी बस इतना फायदा होता है कि चयन समिति के सदस्यों को फिल्म और कथानक की विस्तार से जानकारी हो जाती है . फिर भी उस फिल्म को वोटिंग से तो गुजरना ही पड़ता है. हमारे देश के लिए बस एक मात्र उपलब्धि इस बार उधोगपति अनिल अम्बानी का रेड कारपेट पर चलना था . अनिल चूँकि स्टीवन स्पीलबर्ग की कंपनी ड्रीम वर्ल्ड के साझेदार है और ड्रीम वर्ल्ड की तीन फिल्मों को ग्यारह नामांकन मिले थे लिहाजा किसी भारतीय शक्ल को कोडक थियेटर में देखना लाजमी था . ( इस कंपनी की बनाई एक फिल्म -'' हेल्प'' के लिए सहायक अभिनेत्री का ओस्कर मिला है )
सोने के पत्रे में ढली साढे तीन किलो की इस ओस्कर प्रतिमा का अपना जादू है और इसके समारोह की भी अपनी एक शेली है . समारोह में भाग लेने वाले पुरुषों को जेकेट पहनना अनिवार्य है . अगर आप टेक्सिदो पहन कर आते है तो यह आपकी शान के साथ आपकी हेसियत भी जाहिर करता है . महिलाओं के लिए गाउन पहनना अनिवार्य है . इसी तरह के दिशा निर्देश बोल चाल की भाषा के लिए भी तय है .
ओस्कर का जादू हमारे देश के फिल्मकारों पर सर चढ़ कर बोलता है . सारी उम्र हिंदी फिल्मो से दाल रोटी खाने वाले हमारे फिल्मकार टेलीविजन या सार्वजनिक जगह पर हमेशा अंग्रेजी बोलते है. यही नहीं हमारे फ़िल्मी पुरुस्कारों में भी आयातित लाइने ( कृपया ओस्कर की फूहड़ नक़ल पढ़े ) हुबहू दोहराते नजर आते है ..एंड द अवार्ड गोस टु.... ओसकर ने अपनी मौलिकता बनाई है. हम न जाने कब अपनी पहचान बनायेगे ?
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