शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

एक कालजयी फिल्म : पुष्पक

इस बरस होलीवूड में बनी फिल्म ''आर्टिस्ट'' को ओस्कर के लिए  दस श्रेणियों में नामांकित किया गया है. जहाँ इस साल इस मूक फ़िल्म का जलवा है वहीं भारत में बनी मूक फ़िल्म 'पुष्पक' भी इस साल रिलीज़ के 25 साल पूरे कर रही है.फ़िल्म पुष्पक में भले ही डायलॉग ना रहे हों लेकिन फ़िल्म की शुरुआत में दिए जाने वाले टाइटल को भाषा के हिसाब से बदलकर कुल छह भाषाओं में रिलीज़ किया गया.1987 में आई फ़िल्म पुष्पक में कमल हासन ने काम किया था और इस फ़िल्म को सिंगितम श्रीनिवासा राव ने निर्देशित किया था.
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि श्रीनिवासा राव को ऐसी फ़िल्म बनाने का विचार नहाते वक्त आया था. ऐसे समय में जब फ़िल्मों में गानों और संवाद का बोलबाला था तो इस तरह की मूक फ़िल्म के बारे में सोचना एकदम अलग सोच थी. और इस सोच को 1987 में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों में संपूर्ण मनोरंजक फ़िल्म का पुरस्कार भी मिला.भले ही फ़िल्म पुष्पक संवादरहित थी लेकिन इस फ़िल्म में स्थिति के हिसाब से बैकग्राउंड साउंड का इस्तेमाल बड़ी ही खूबी से किया गया और फ़िल्म का स्क्रीनप्ले ही इस फ़िल्म की सबसे बड़ी विशेषता थी.गाली गलोच और हिंसा के अतिरेक से भरी फिल्मे देखने वाले युवाओं को एक बार इस फिल्म को अवश्य देखना चाहिए. इस तरह की ब्लेक कामेडी मुद्दत से बनती है  
खास बात ये है कि इस फ़िल्म में पहली बार कमल हासन को बिना मूंछों के पेश किया गया था.इस फ़िल्म की यादें अब भी लोगों के ज़ेहन में ताज़ा हैं, ना सिर्फ प्रयोगात्मक फ़िल्म के लिए बल्कि इस फ़िल्म में दिए गए संदेश की वजह से भी कि कैसे ज़िंदगी में शार्टकट से कमाए गए पैसे से आप खुशी नहीं हासिल कर सकते.  आज 25 साल बाद ये फ़िल्म और ज़्यादा सार्थक हो जाती है जब देश में घोटालों की ख़बरें हो और लोग भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हों. 
महात्मा गांधी पर फिल्म  ''हे राम'' बनाने वाले कमल हासन एक समय गांधी के घोर आलोचक थे . ''हे राम'' उनके शब्दों में बापू से क्षमा याचना थी .

1 टिप्पणियाँ:

Shikha Kaushik ने कहा…

aap ne sateek likha hai RAJNEESH JI .bahut manoranjak v sandeshpradhan film hai pushpak .aabhar

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