शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

पत्रकार टाईप के लोग

प्रशासन ने भी कुर्सी नहीं दिया शायद वह भी .................

कैसा अजीब लग रहा है जुमला न, मैं भी सुना तो अजीब लगा था, आज मेरा भी मूड किया चलो आज मुख्यालय चलते है, परचा दाखिला है, चलना चाहिए. आम तौर पर मैं जाता नहीं हूँ ऐसी जगह, क्योंकि  न्यूज़ चैनल वालो का जाना मजबूरी है उन्हें बिजुअल बनाना है, पर प्रिंट मीडिया का काम तो फोटोग्राफर भेज कर चल जाता है. करना क्या है फोटो खींचा और प्रत्यासी का नाम लिख लिया हो गया काम......... खैर बात यह नहीं थी, मेरी सोच थी की हमारे ज्ञानपुर के कुछ पत्रकार मित्र मिल जायेंगे. मुख्यालय पहुंचा तो ज़ी न्यूज़ के दिनेश जी को फ़ोन किया वे कैंटीन में बैठे मिले, गया तो अमर उजाला के फोटोग्राफर दुर्गेश यादव और इलेक्ट्रोनिक मिडिया के रमेश मौर्य भी थे.  हाल चाल हंसी मजाक चल रहा था तभी दुर्गेश जी ने कहा अभी पत्रकार टाईप के लोग भी आते होंगे. मैं बड़ा चक्कर में पड़ा यह पत्रकार टाईप क्या है... पूछने पर कहा  अभी पता लग जायेगा.. फिर हम लोग उस जगह आये जहा से तीनो विधानसभा के प्रत्यासी मिल जाय..  प्रत्यासी आता तो उसका फोटो, फिर नाम आदि का विवरण लेकर बधाई फिर अपने बातो में मशगूल हो जाते ........... इसी बीच कई पत्रकार साथी आये, सबसे हाल चाल हुआ पर प्रश्न वही था -- पत्रकार टाईप के लोग........... यह था की मजा आ रहा था... कई जुमले छोड़े जाते थे. जैसे दुर्गेश जी जब कोई यादव प्रत्यासी आता तो कहते... दुर्भाग्य से मैं भी यादव हूँ और सबकी हंसी छूट जाती......... पर सवाल वही का वही था..... फिर चर्चा छिड़ी की आयोग ने हाथ बांध दिए,. सारी कमाई बंद कर दी....... कोई प्रत्यासी अख़बार से हाथ नहीं मिला रहा है और प्रत्यासी की भागदौड़ की खबर भी नहीं छप रही है....... प्रत्यासी  का नाम नहीं आना चाहिए नहीं तो मुर्गा नहीं फंसेगा............. छोटे नगरो में रहने वाले पत्रकारों की औकात लोग देखने लगे है..... मैं भी जानता हूँ की चुनाव आयोग द्वारा आचार संहिता कहा तक कलम पर रोक लगाती है. पर असली रोक अख़बार के मालिकान लगा कर बैठे हैं और हम आयोग का रोना रोते है... क्योंकि अपनी औकात भी बचानी है... ... पर सच तो हम भी जानते हैं........ फोटोग्राफर परेशान है की उसकी फोटो आजकल नहीं छप रही है जुगाड़ कैसे हो....... विज्ञापन व्यवस्थापक परेशान है क्योंकि डीलिंग तो डायरेक्ट हो रही है..... चैनेल वाले खुश है , उनकी स्टोरी बन जा रही है..... हंसी मजाक के बीच थक कर उसी घास पर बैठ जाते है और एक दूसरे से पूछते है कोई आ रहा है की नहीं..... समय बीतने के साथ मजाक भी काम होता जा रहा है.. आखिर सच्ची हंसी तो दो पल की भी काफी होती है. .... फिर दुर्गेश जी बताते है की कल एक प्रत्यासी से एक प्रेस फोटोग्रफर ने पैसे मांगे थे ... अब मिला था की नहीं मुझे नहीं पता. .. उन्ही लोंगो के बारे में बात हो रही थी........... वही थे पत्रकार टाईप के लोग...... वहा से हम और पंकज जी साथ चले तो ज्ञानपुर मिथिलेश जी से मिलने आ गए..... जब मैं दैनिक जागरण में लिखता था तो. .. मिथिलेश जी से मेरी खूब बनने लगी और आज भी खूब बनती है... फिर वही लिखने की बात .. अपनी मजबूरियां..... फिर वापस ऑफिस आया और समाचार लिख कर भेजा........
पर पता नहीं क्यों मैं अभी तक उस  बात से सहमत नहीं हो पाया हूँ.......आखिर पत्रकार टाईप के लोग वह कहा है... वे तो फोटोग्राफर हैं उनकी अपनी मजबूरियां है.... अख़बार क्या देता है यह सभी को पता है........ 
पत्रकार टाईप के लोग वे फोटोग्राफर कदापि नहीं है........... चुनाव में लोग जागरूकता लाने की बात करते है.. अच्छे बुरे को पहचानने की बात करते है.. आखिर समाज का एक बड़ा तबका अख़बार पर ही विश्वास करता है.... जो शिक्षित है वह पढ़कर उन्हें भी बताता है जो गाव में रहते है और उन तक समाचार माउथ मिडिया पहुंचता है... पत्रकारों को सच लिखने की छूट क्यों नहीं दी जाती, सच बताने की छूट क्यों नहीं दी जाती----- आखिर एक पत्रकार यह क्यों नहीं बता सकता की कौन अच्छा है और कौन बुरा.. कौन हमारा रहनुमा बनने की क़ाबलियत रखता है...कौन नहीं........... ऐसा करेंगे तो हम आचार संहिता का उलंघन करेंगे... और अख़बार मालिक के गुस्से के शिकार होंगे...... भले ही हमारा मान सम्मान चला जाय,,,,,,,,, 
सच तो यह है की हम सभी पत्रकार ------- पत्रकार नहीं -------- पत्रकार टाईप के ही है..........

1 टिप्पणियाँ:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

हाहहाहा...
बहुत बढिया..
पत्रकार टाइप लोगों से आजकल रोज मिलना हो रहा है। चुनावी सफर पर हूं, ये सफर 28 फरवरी तक जारी रहेगा।
आपने एक विषय दे दिया है, कोशिश करुंगा कि सफर खत्म करने के बाद इस पर भी कुछ जरूर लिखूं..

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