सोमवार, 16 जनवरी 2012

भाई-बहन ..प्रेम काव्य...अष्टम सुमनान्जलि--..सहोदर व सख्य-प्रेम...गीत-३...डा श्याम गुप्त..



  प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा

सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है-- अष्टम सुमनान्जलि--सहोदर व सख्य-प्रेम ...इस खंड में ...अनुज, अग्रज,  भाई-बहन,  मेरा भैया,  सखा ,  दोस्त-दुश्मन एवं दाम्पत्य ...आदि सात  रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी 
---प्रस्तुत है ..तृतीय रचना ...भाई-बहन ...     

भाई और बहन का प्यार कैसे भूलजायं,
बहन ही तो भाई का प्रथम  सखा होती है |
भाई ही तो बहन का होता है प्रथम मित्र,
बचपन की यादें कैसी मन को भिगोती हैं |
बहना दिलाती याद, ममता की माँ की छवि,
भाई में बहन छवि पिता की संजोती है |
बचपन महकता रहे, सदा  यूंही श्याम',
बहन को भाई उन्हें बहनें प्रिय होती हैं||



भाई औ बहन का प्यार दुनिया में बेमिसाल ,
यही प्यार बैरी  को भी राखी भिजवाता है 
दूर देश बसे हों , परदेश या विदेश में हों ,
भाइयों को यही प्यार खींच खींच लाता है |
एक एक धागे में बंधा असीम प्रेम-बंधन ,
राखी का त्यौहार , रक्षाबंधन बताता है |
निश्छल अमिट बंधन,श्याम' धरा-चाँद जैसा ,
चाँद  इसीलिये  चंदामामा  कहलाता है ||


रंग-बिरंगी सजी राखियाँ कलाइयों पै,
देख देख  भाई  हरषाते  इठलाते हैं | 
बहन जो लाती है मिठाई भरी प्रेम-रस,
एक दूसरे को बढे प्रेम से खिलाते हैं |
दूर देश बसे जिन्हें राखी मिली डाक से,
बहन की ही छवि देख देख मुसकाते हैं |
अमिट अटूट बंधन है ये प्रेम रीति का,
सदा बनारहे श्याम ' मन से मनाते हैं ||



1 टिप्पणियाँ:

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

बहुत ही निर्मल भावों की सुंदर अभिव्यक्ति,वाह !!!

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