प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा
अनुज तुम्हारे नटखट बचपन,
दोनों हाथों में बिस्कुट ले,
होली -गूजे, दीप-दिवाली -
डंडे का जब बैट बनाया,
साथ साथ ही गए विद्यालय,
वो छत की चांदनी सुहानी,
सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- अष्टम सुमनान्जलि--सहोदर व सख्य-प्रेम ...इस खंड में ...अनुज.
अग्रज, भाई-बहन, मेरा भैया, सखा , दोस्त-दुश्मन एवं दाम्पत्य ...आदि सात रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी
---प्रस्तुत है प्रथम रचना...अनुज...
अनुज तुम्हारे नटखट बचपन,
की यादें आती हैं |
गाथाएँ गाती हैं ||
दोनों हाथों में बिस्कुट ले,
मचल मचल कर हंसना |
तीन पैर की गाडी लेकर,
खट खट खट खट चलना |
होली -गूजे, दीप-दिवाली -
की बातें भाती हैं |
की यादें आती हैं ||
डंडे का जब बैट बनाया,
विकिट बनी दीवार |
वह क्रिकेट, गुल्ली-डंडे का ,
खेल वो सदाबहार |
मन इठलाती हैं |
अनुज तुम्हारे नटखट बचपन,
की यादें आती हैं ||
साथ साथ ही गए विद्यालय,
संग संग खाया खाना |
शैतानी पर डांट दिया तो,
भूखे ही सोजाना |
गेंद-तड़ी वह आंख मिचौली ,
की यादें आती हैं |
अनुज तुम्हारे नटखट बचपन,
की यादें आती हैं ||
वो छत की चांदनी सुहानी,
खेल खेल में बेईमानी |
ताल-नहर-बरसात सुहानी,
कविता, भाषण लेख कहानी|
सावन के झूलों की यादें ,
मन हरषाती हैं |
अनुज तुम्हारे नटखट बचपन ,
की यादें आती हैं ||
1 टिप्पणियाँ:
अनुज तुम्हारे नटखट बचपन , की यादें आती हैं || सुन्दर कविता है..
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