मंगलवार, 3 जनवरी 2012

अनुज ----प्रेमकाव्य.. अष्ठम सुमनान्जलि -सहोदर व सख्य-प्रेम..गीत १...डा श्याम गुप्त..........



              प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा

सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है-- अष्टम सुमनान्जलि--सहोदर व सख्य-प्रेम ...इस खंड में ...अनुज. 
 
अग्रज,  भाई-बहन,  मेरा भैया,  सखा ,  दोस्त-दुश्मन एवं दाम्पत्य ...आदि सात  रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी 
 
---प्रस्तुत है प्रथम रचना...अनुज...

अनुज तुम्हारे नटखट बचपन,
     की यादें आती हैं |
घोड़े वाले   पैसे की   वो,
     गाथाएँ गाती हैं ||


दोनों हाथों में बिस्कुट ले,
मचल मचल कर हंसना |
तीन पैर की गाडी लेकर,
खट खट खट खट  चलना |

होली -गूजे, दीप-दिवाली -
    की बातें  भाती हैं |  
अनुज तुम्हारे नटखट बचपन,
     की यादें आती हैं || 


डंडे का जब बैट बनाया,
विकिट बनी दीवार |
वह क्रिकेट, गुल्ली-डंडे का ,
खेल वो सदाबहार |

टेसू के गीतों की यादें ,
   मन इठलाती हैं |
अनुज तुम्हारे नटखट बचपन,
    की यादें आती हैं ||


साथ साथ ही गए विद्यालय,
संग संग खाया खाना  |
शैतानी पर डांट दिया तो,
भूखे  ही सोजाना |

गेंद-तड़ी वह आंख मिचौली ,
     की यादें आती हैं |
अनुज तुम्हारे नटखट बचपन, 
    की यादें आती हैं ||


वो छत की चांदनी सुहानी,
खेल खेल में बेईमानी |
ताल-नहर-बरसात सुहानी,
कविता, भाषण लेख कहानी|

सावन के झूलों की यादें ,
    मन हरषाती हैं |
अनुज तुम्हारे नटखट बचपन ,
   की यादें आती हैं ||




1 टिप्पणियाँ:

मदन शर्मा ने कहा…

अनुज तुम्हारे नटखट बचपन , की यादें आती हैं || सुन्दर कविता है..

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