सोमवार, 9 जनवरी 2012

हँसमुखजी थे पान के शौक़ीन (हास्य कविता)




 हँसमुखजी थे
पान के शौक़ीन
खाते थे
पांच मिनिट में तीन
पीक से भर कर
मुंह हो जाता गुब्बारा
होठ हो जाते लाल
कर रहे थे बात दोस्त से
ध्यान था कहीं ओर
किस्मत थी खराब 
पूरे जोर से मारी
उन्होंने पीक की पिचकारी
बगल से जा रही थी
एक भारी भरकम नारी
पीक पडी उसकी साड़ी पर
महिला गयी भड़क
पहले तो दी गालियाँ
फिर चप्पल लेकर दौड़ी
डरते डरते हँसमुखजी ने
दौड़ लगाई सरपट
पैर पडा केले के छिलके पर
फ़ौरन गए रपट
महिला ने भी दे दना दन
मारी चप्पल पर चप्पल
कर दिया मार मार कर
हाल उनका बेहाल
हाथ जोड़ कर पैर पकड़ कर
 माफी माँगी
और छुड़ाई जान
कान पकड़ कर कसम खाई
जीवन भर अब नहीं
खाऊंगा पान
09-01-2012
21-21-01-12

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