सिन्दूरी सुबह है ...उजली हर रात है
अपने वतन की तो जुदा हर एक बात है
जितने नज़ारे हैं जन्नत से प्यारे है
भारत तो धरती को रब की सौगात है .
बासन्ती मादकता मन को लुभाती है
रंगीले फागुन में सृष्टि रंग जाती है
गर्मी मिटाने आती सावन फुहारे है
सब ऋतुओं में आ जाती उत्सव बहारे हैं
गहरे निशा के तम में उज्जवल प्रभात है
भारत इस धरती .............................
पर्वत हिमालय जैसा सिर पर एक ताज है
पावन गंगा हर लेती हम सबके पाप है
बागों में कोयल गाती कितना सुरीला है
अपने वतन में सब कुछ कितना रंगीला है
सूखी -प्यासी धरती पर ठंडी बरसात है
भारत इस धरती को .....
शिखा कौशिक
[विख्यात ]
5 टिप्पणियाँ:
देशभक्ति और देश प्रेम के रंगों में सराबोर करती सुंदर रचना.. शुभकामनायें!
bahut hi pyari rachna!
thanks a lot -ANITA JI ,ANJANA JI AND M11.IN
बहुत सुंदर गीत व सुंदर व प्रेरक गायन।
thanks DEVENDRA JI .
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