आंचती हुई काजल को
वो कैसे मुस्कुरा रही है |,
लुफ्त उठा जीवन का
मोहब्बत की झनकार में
अपनी धुन में मस्त उसकी
पायलियाँ गीत गा रही हैं |
केशो को सवारकर
चुनरी ओढ़ वो घूँघट में
लज्जा से सरमा रही है |
साज सज्जा से हो तैयार
खुद को निहार आइने में
नजरे झुका और उठा रही है |
इंतज़ार में मेरे वो सजके
भग्न झरोखे में छिपकर
मेरा रास्ता ताक रही है |
- दीप्ति शर्मा
5 टिप्पणियाँ:
bhartiy nari ka bahut sundar shabdon me chitran kiya hai .hardik shubhkamnayen
sukriya shikha ji
....अच्छी कविता व भाव हैं...बधाई
---कविता के कला पक्ष में भी सुधार करें...
-पहला बन्द चार पन्क्तियो का है , वह भी तीन का होना चाहिये ..
-अन्तिम में ताक है- जो मुस्कुरा, गा, सरमा, उठा .से तुकबन्दी नहीं कर रहा ...
achchhi prastuti par mai shyam ji ke bat se sahamat hoon
sukriya shyam ji yevam ana ji ,,, m sudhar ki kosis karugi
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