रविवार, 30 अक्तूबर 2011

शिव महापुराण -७ [विद्येश्वर संहिता ]


शिव महापुराण -७ [विद्येश्वर संहिता ]
                                          
                                 
                                               [श्री गणेशाय नम: ] 




बहुत समय की  बात  है  शौनकादी  सज्जन  
प्रभास तीर्थ  में  किये  यज्ञ  का  आयोजन  
सूत  जी  का भी  हुआ  उसमे  शुभागमन  
उनसे  ऋषियों  ने  कहा  बतलाओ  -हे  भगवन !



कलियुग में जब धर्म का हो जायेगा लोप 
बढ़ जायेगा भ्रष्टता और पाप-कोप 
अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न आडम्बर चहुँ ओर
कैसे पकड़ेगा भला प्राणी सद्गति की डोर ? 



सूत जी बोले-सुनो हे ऋषियों मेरी बात 
प्राणी हित का प्रश्न कर किया मुझे कृतार्थ 
शिव-पुराण कलिकाल में हर लेगी  हर पाप 
सर्वोत्तम इस ग्रन्थ का अद्भुत है प्रताप . 



Lord Shiva


जैसे  रविकर का उदय फैलाकर प्रकाश 
हर लेता सम्पूर्ण तम ;धरा हो या आकाश 
उसकी भांति यह ग्रन्थ करता है उपकार 
इसके श्रवण से मिटता है पाप का अंधकार 

Lord Shiva


मत-भिन्नता को हरे ये वेदान्तों का सार 
होती शिवत्व की प्राप्ति जो कहे -सुने  एक  बार  
जीव-उर में जगाकर 'शिवोअहम ' की भावना  
आत्मतुष्टि देकर करे शिव रूप में स्थापना .

Lord Shiva


सूत  जी बोले पुन:- घटना सुनो प्राचीन 
कल्प के आरम्भ में ब्रह्मा थे सृष्टि-रचना लीन
तब उठी ऋषियों के मन में एक जिज्ञासा  प्रबल 
कौन सा पुराण श्रेष्ठ ?किससे मुक्ति-पथ सुगम ?  

Lord Shiva


सूत जी थे जानते  प्रश्न ये नहीं सरल 
मात्र एक पुराण को श्रेष्ठ कहना है विषम 
भक्ति,ज्ञान;बैराग से सभी पुराण हैं भरे 
श्रेष्ठ कह दें एक को ;कैसे ये साहस करें ?

God Shiva


आपसी विवाद से जब प्रश्न का मिला न हल 
ब्रह्मा जी के पास चल दिए ऋषि सकल 
बात सुन ऋषियों की ब्रह्मा जी के थे वचन 
बात जो मैं कह रहा इसको रखना स्मरण 
God Shiva


शिव ही महादेव हैं ;शिव ही आदिदेव
शिव को है ज्ञात सब ;शिव ही जगत देव 
मन तथा वाणी से भी उन तक पहुंचना है कठिन 
किन्तु अन्य देवों से  पूर्व होते हैं  प्रसन्न  .
God Shiva


इसलिए ऋषियों सुनो सुदीर्घ 'यज्ञ ' तुम करो 
तभी कहीं महादेव  के प्रसाद से झोली भरो  
हो गयी जो शिव कृपा ;उसका महान है असर 
ज्ञात होगी वेदोक्त विद्या -साध्य-साधन -रूपसर .

Lord Shiva


मुनियों के अनुरोध पर पुन:उवाच ब्रह्मा जी आराध्य 
शिव की सेवा साधन है;शिव प्राप्ति ही है साध्य 
इच्छारहित भाव से जो बनता शिव का सेवक 
श्रेष्ठ  ऐसा भक्त ही कहलाता  है साधक .
Lord Shiva


वेदोक्त विधिनुसार जब साधक करता शिव आराधना 
सफल तब होती साधक की परम -पद साधना 
भक्त को मिलता सदा फल भक्ति के ही अनुरूप है 
सालोक्य,सारूप्य ,सामीप्य,सायुज्य -मुक्ति भक्ति रूप है .
Lord Shiva


भक्ति के ये रूप स्वयं शिव ने ही बताएं हैं 
श्रवण, कीर्तन,मनन ,मुक्ति के उपाय हैं 
शिव-कथा सुनना; उनकी महिमा का गुणगान 
शिव-ईश्वरत्व का मनन -तीन हैं साधन महान  



God Shiva

तीनों साधनों का पालन करता साध्य-पूर्ति 
शिव में मन रमा, शिव कल्याण की है मूर्ति 
एक अन्य तथ्य तुमको समझना चाहिए 
क्यों गुरु से सर्वप्रथम कथा श्रवण करना चाहिए ?
Lord Shiva
गुरु है साक्षात् ब्रह्म ;जिस पर सहज विश्वास है 
उसके कहे हर शब्द से तृप्त ज्ञान-प्यास है 
इसलिए सर्वप्रथम गुरु से कथा श्रवण करो 
कीर्तन करो फिर  स्थिर -चित्त मनन करो .
                                                                    [......जारी ]


                                                                   शिखा कौशिक 
                                              [भक्ति अर्णव ]

3 टिप्पणियाँ:

shyam gupta ने कहा…

शिव ही महादेव हैं ;शिव ही आदिदेव----सुंदर भावानुवाद ..... बधाई

Jeevan Pushp ने कहा…

bahut sundar ...

Shikha Kaushik ने कहा…

shyam ji v maneesh ji hardik dhanyvad

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