शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

सुनो अन्ना:   आदरणीय अन्ना अंकल, मैं “व्यापारी और बंदर“ कहानी ...

सुनो अन्ना: आदरणीय अन्ना अंकल,
मैं “व्यापारी और बंदर“ कहानी ...
: आदरणीय अन्ना अंकल, मैं “व्यापारी और बंदर“ कहानी पढ रहा था तो मुझे लगा कि ऐसी कहानी तो मैं भी लिख सकता हूं. लेकिन अंकल जी, यह कहानी इतनी ...

7 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

नील प्रदीप जी, मैं काफी दिनों बाद ब्लॉग पर लौटा हूँ. पर आपकी पोस्ट पढने के लिए क्लिक किया तो देखा आपने पूरी पोस्ट लगायी ही नहीं है. यह ठीक है की आपके ब्लॉग पर आकर पूरी पोस्ट पढ़ी जा सकती है. पर नियमो के अनुसार पूरी पोस्ट यहाँ लगनी है. कृपया साहित्यिक आतंकवाद बंद करे. आपका स्वागत है.

ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU' ने कहा…

जब तक माया मोह लोभ काम रहेगा तब तक भ्रष्टाचार रहेगा

virendra sharma ने कहा…

मंगल मय हो सबको दीपों का त्यौहार ,दीपों का आकाश .आभार इस हलचल के लिए . .शानदार प्रस्तुति .

प्रदीप नील वसिष्ठ ने कहा…

प्रिय वीरू भाई ,
आपको भी दिवाली की शुभ कामनाएं
उत्साह बढाने के लिए आभारी हूँ
कृपया ब्लॉग देखते रहिएगा

प्रदीप नील वसिष्ठ ने कहा…

प्रिय हरीश जी ,
माफ़ी चाहता हूँ क़ि मैं पिस्तोल से खेल रहा था और आपने मुझे आतंकवादी समझ लिया
खेल इसलिए कह रहा हूँ क़ि मुझे पता नहीं था क़ि इसे पोस्ट कैसे करते हैं , आपके ब्लॉगपर ?
मैंने अपने ब्लॉग पर लिख कर ब्लॉग का सिम्बल दबाया. और आपके ब्लॉग पर (अपनी समझ में )पोस्ट कर के प्रसन्न हो गया
मुझे क्या पता था क़ि सिर्फ लिंक ही जाएगा और आप बहुत दिनों बाद आते ही मुझे डांटने लगेंगे
चलो बात साफ़ हो गई .
इस आतंकवादी की रचना कैसी लगी ये तो बता देते यार ?
कोई बात नहीं अब बता देना
सादर आपका
प्रदीप नील

प्रदीप नील वसिष्ठ ने कहा…

तेजवानी जी तथा सामाजिकता के दंश भाई
आभारी हूँ कि आपने समय निकाल कर न केवल रचना को पढ़ा बल्कि अमूल्य टिप्पणियाँ भी छोड़ी
आपके दो शब्द कितना होसला दे गए , कोई मुझ से पूछे
मेरे ब्लॉग पर आते रहिएगा www.neel-pardeep.blogspot.com
धन्यवाद

हरीश सिंह ने कहा…

नील प्रदीप जी, मैंने बात मजाकिया लहजे में कही थी आपको बुरी लगी हो तो माफ़ी चाहेंगे. यह मंच आपका है. यह हम सबका परिवार है.

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