गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

परिवर्तन की घड़ी

जीवों के जीवन का मांझी
इसमें कर्इ तत्व हैं सांझी
परिवर्तन पल-पल का नर्तन
कभी षांति तो कभी है गर्जन
कभी उलझ कश्ट में जाना
फिर भी साहस नही गंवाना
यह जीवन परिवर्तन है
तन कुम्हार का बर्तन है



भोगी होता कभी वियोगी
योगी बन जाता है ढोंगी
क्षण-क्षण की कीमत भारी
इसके बस में दुनिया सारी
कब क्या होगा जाने कौन
है वाचाल कभी है मौन

पत्थर बन जाता है धूल
कांटा बन जाता फूल
जीवन है सरिता की धारा
घटता-बढता रहता है पारा
लोहा बन जाता है पानी
ज्ञानी मूर्ख, मूर्ख विज्ञानी
आज जो है वह कल न रहेगा
कब किस क्षण, क्या पवन बहेगा
जो कुछ करना है कर डालो
कल के लिए मत टालो।।
- मंगल यादव

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