सोमवार, 19 सितंबर 2011

स्पर्श: समझो गर तुम

स्पर्श: समझो गर तुम: शिकायत नहीं है वफ़ा से तुम्हारी फिर भी तन्हाइयों के पास हूँ | उलझी हूँ अपनी ही क...

2 टिप्पणियाँ:

जन सुनवाई @legalheal ने कहा…

deeptiji,

जल्दी ही हमारे ब्लॉग की रचनाओं का एक संकलन प्रकाशित हो रहा है.

आपको सादर आमंत्रण, कि आप अपनी कोई एक रचना जिसे आप प्रकाशन योग्य मानते हों हमें भेजें ताकि लोग हमारे इस प्रकाशन के द्वारा आपकी किसी एक सर्वश्रेष्ट रचना को हमेशा के लिए संजो कर रख सकें और सदैव लाभान्वित हो सकें.
यदि संभव हो सके तो इस प्रयास मे आपका सार्थक साथ पाकर, आपके शब्दों को पुस्तिकाबद्ध रूप में देखकर, हमें प्रसन्नता होगी.

अपनी टिपण्णी से हमारा मार्गदर्शन कीजिये.

जन सुनवाई jansunwai@in.com

Manoranjan Manu Shrivastav ने कहा…

समझ के भी नादाँ बनाते हैं कुछ लोग
समझाने पे गलती का एहसास होने लगेगा

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मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है
ड्रैकुला को खून चाहिए, कृपया डोनेट करिये !! - पार्ट 1

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