शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

प्रेम काव्य-. षष्ठ सुमनान्जलि--रस श्रृंगार--भाग (ख)-ऋतु शृंगार गीत-८ --डा श्याम गुप्त..





                    प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....खंड ख -ऋतु शृंगार-- के इस खंड में विभिन्न ऋतुओं से सम्बंधित ..बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, कज़रारे बादल, हे घन !, शरद, हेमंत एवं शिशिर आदि ८ गीत प्रस्तुत किये जायेंगे | प्रस्तुत है  अष्ठम  गीत .व ऋतु श्रृंगार खंड का अंतिम गीत ..शिशिर ...
                       ( यद्यपि  अभी शरद ऋतु  है परन्तु ...इस महाकाव्य के प्रस्तुतीकरण की क्रमिकता में  अष्टम 
      गीत शिशिर  है जिसे क्रमिकता में व्यवधान न डालते हुए...प्रस्तुत किया जारहा है -लीजिए 
    प्रेम-भाव में अतर्क्य सुख भाव ......शरद में ..शिशिर  का आनन्द ).....


मैंने ही  भूलें की होंगी , स्वीकृति पाती भेज रहा हूँ |
तेरी याद पुरानी हे प्रिय! मन में अभी सहेज रहा हूँ ||

शुष्क पातजब एक टूटकर, गिरा सामने यह सच पाया |
देखी अपनी जीवन छाया, मैं समझा तब पतझड़ आया ||

तेरे बासंती तन मन से, मैं क्यों इतना दूर होगया |
समझ न पाया क्यों तेरा मन,अहंकार में चूर होगया ||

तेरी नेक वफाओं को मैं, अब तक कहाँ भुला पाया हूँ |
तेरे पावन मन की बातें, मन से कहाँ मिटा पाया हूँ ||

तेरी बातें  सच का सपना,  मैं  भूलों की भंवर पड़ा था |
अपनेपन में मस्त रहा मैं,पुरुष अहं में जकड खडा था ||

सूखे हुए गुलाब रखे जो , पन्नों बीच, सहेज रहा हूँ |
मैंने ही भूलें की होंगी , स्वीकृति पाती भेज रहा हूँ ||

तुमने भी यदि रखे सहेजे, कुछ सूखे गुलाव पुस्तक में |
तुमको जो कुछ सत्य सा लगे,मेरी इस स्वीकृति दस्तक में|

खत  रूपी इक शुष्क पात ही, आशा, क्षमा रूप मिल जाए |
अपने जीवन के पतझड़ में , शायद फिर बसंत मुस्काए ||

पाती पढ़ बेचैन होगये,झर झर झर निर्झर नैन होगये |
मैंने क्यों न पुकारा तुमको,क्यों मेरे सुख चैन खोगये ||

अहं भाव तो मुझ में ही था,शायद समय का चक्र यही था |
सोचा ही क्यों ऐसा हमने , कौन गलत था कौन सही था !

सही गलत अनुबंध शर्त सब, भला प्यार में कब होती  हैं |
मेरे गीत नहीं अब बनते,  आँखें झर झर झर रोती  हैं ||

क्षमा मुझे अब तुम ही करदो, स्वीकृति पाती भेज रही हूँ |
आशा रूपी नूतन किसलय, पत्र सजाकर भेज रही हूँ ||

                          -----क्रमश: षष्ठ सुमनांजलि ...(ग).वियोग श्रृंगार ...



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