प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....खंड ख -ऋतु शृंगार-- के इस खंड में विभिन्न ऋतुओं से सम्बंधित ..बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, कज़रारे बादल, हे घन !, शरद, हेमंत एवं शिशिर आदि ८ गीत प्रस्तुत किये जायेंगे | प्रस्तुत है सप्तम गीत ...हेमंत ....
( यद्यपि अभी शरद ऋतु है परन्तु ...इस महाकाव्य के प्रस्तुतीकरण की क्रमिकता में सप्तम गीत हेमंत है जिसे क्रमिकता में व्यवधान न डालते हुए...प्रस्तुत किया जारहा है -लीजिए प्रेम-भाव में अतर्क्य सुख भाव ......शरद में ..हेमंत का आनन्द ).....
आई फिर प्रिय शीत सुहानी
घिर घिर आये प्रीति अजानी |
तन मन कांपे शीत पवन से,
उभरे कोई प्रीति कहानी |.....आई फिर से ....||
अपने अंतर्मन के तम को,
दूर करो प्रिय बचन सुनादो |
मेरे मन की फुलवारी में,
कुछ पल बैठो, हिय हुलषादो |
मन के सारे भेद भुलाकर,
प्रीति-प्रेम के बोल सुनादो |
याद करो वह प्रेम कहानी,
याद करो वह शाम सुहानी |.....आई फिर से.....||
शीत पवन तन मन सिहराए,
पीर पुरानी मन लहराए |
मन में जगे प्रीति की इच्छा ,
एसी गर्म बयार बहा दो |
आस और विश्वास भरे पल,
बीतें संग संग हिलमिलकर |
शिशिर घात से जड़ तन मन को,
प्रेम अगन से तुम सहलादों |
मिलजुल कोई गीत सजाएं,
इक दूजे में हम खोजायें
मन महकाए प्रीति सुजानी,
नूतन नित चिर प्रेम कहानी || ....आई फिर से .....||
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