मंगलवार, 13 सितंबर 2011

प्रेम काव्य-. षष्ठ सुमनान्जलि--रस श्रृंगार--भाग (ख)-ऋतु शृंगार गीत-७ --डा श्याम गुप्त..





                    प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....खंड ख -ऋतु शृंगार-- के इस खंड में विभिन्न ऋतुओं से सम्बंधित ..बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, कज़रारे बादल, हे घन !, शरद, हेमंत एवं शिशिर आदि ८ गीत प्रस्तुत किये जायेंगे | प्रस्तुत है  सप्तम  गीत ...हेमंत ....
 
( यद्यपि  अभी शरद ऋतु  है परन्तु ...इस महाकाव्य के प्रस्तुतीकरण की क्रमिकता में  सप्तम गीत हेमंत है जिसे क्रमिकता में व्यवधान न डालते हुए...प्रस्तुत किया जारहा है -लीजिए प्रेम-भाव में अतर्क्य सुख भाव ......शरद में ..हेमंत का आनन्द ).....
 
आई फिर प्रिय शीत सुहानी  
घिर घिर आये प्रीति अजानी |
तन मन कांपे शीत पवन से,
उभरे  कोई प्रीति कहानी |.....आई फिर से ....||

अपने अंतर्मन के तम को,
दूर करो प्रिय बचन सुनादो |
मेरे मन की फुलवारी में,
कुछ पल बैठो, हिय हुलषादो |

मन के सारे भेद भुलाकर,
प्रीति-प्रेम के बोल सुनादो |
याद करो वह प्रेम कहानी,
याद करो वह शाम सुहानी |.....आई फिर से.....||

शीत पवन तन मन सिहराए,
पीर पुरानी  मन लहराए |
मन  में जगे प्रीति की  इच्छा ,
एसी गर्म बयार बहा दो |

आस और विश्वास भरे पल,
बीतें संग संग हिलमिलकर |
शिशिर घात से जड़ तन मन को,
प्रेम अगन से तुम सहलादों |

मिलजुल कोई गीत सजाएं,
इक दूजे में हम खोजायें  
मन महकाए प्रीति सुजानी,
नूतन नित चिर प्रेम कहानी ||  ....आई फिर से .....||

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