गुरुवार, 25 अगस्त 2011

कोरे सपने.......



बिना तुम्हारे बंजर होगा आसमान 
उजड़ी सी होगी सारी जमीन 
फिर उसी धधकते हुए सूर्य के प्रखर तले 
सब ओर चिलचिलाती काली चट्टानों पर 
ठोकर खाता, टकराता भटकेगा समीर 
भौंहों पर धुल-पसीना ले तन-मन हारा 
बेचैन रहूंगा फिरता मैं मारा-मारा
देखता रहूँगा क्षितिजों की 
सब तरफ गोल कोरी लकीर 
फिर भी सूनेपन की आईने में  चमकेगा लगातार 
मेरी आँखों में रमे हुए मीठे आकारों का निखर 
मैं संभल न पाऊंगा डालूँगा दृष्टि जिधर 
अपना आँचल फैलायेगी वह सहज उधर.......

नीलकमल वैष्णव"अनिश"
०९६३०३०३०१०
०९६३०३०३०१७

3 टिप्पणियाँ:

rubi sinha ने कहा…

wah wah

विभूति" ने कहा…

बहुत ही सुन्दर..... रचना....

Neelkamal Vaishnaw ने कहा…

आप लोगों ने मेरी रचना को पसंद कर इतने अच्छे विचार प्रकट किये मैं बहुत बहुत आभारी हूँ आपका
मेरी रचनाये नीचें यहाँ पर भी हैं आप आये और अपने मित्रता की पंक्तियों में मुझे भी शामिल कर अनुग्रहित करें
MITRA-MADHUR
MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN

Add to Google Reader or Homepage

 
Design by Free WordPress Themes | Bloggerized by Lasantha - Premium Blogger Themes | cna certification