शनिवार, 13 अगस्त 2011

अब यह पवित्र तिरंगा सिर्फ और सिर्फ हमलोगों का है

इतना भी मत दहाड़ो बाबा वरना 
मूंह से जबान खींच ली जायेगी  !!
बहुत चीत्कार कर रहे हो तुम 
गला ही घोंट दें क्या तुम्हारा ??
समझदारी इसी में है कि
सबके संग और समय के साथ चलो 
बहाव के साथ बहते जाओ....
और बहाव है इस समय में 
भ्रष्टाचार-बेईमानी और नफरत का 
तुम भी वही करो ना 
जो सब कर रहे हैं,यानि कि 
जो जितना भी मजबूत है,वो करे 
औरों पर उतना ही अत्याचार !!
सब तो परमात्मा की संतानें हैं ना 
तुम भी और वे सब भी 
जो कर रहे हैं वह सब,
जो नहीं चाहते तुम सब 
और जो किसी के भी हित में नहीं है !!
ना जाने कौन सा परमात्मा हैं  
उन सब लोगों के भीतर
जो डकार रहे हैं औरों का धन और 
ना जाने कितने ही मासूमों की जान 
ना जाने कौन सा परमात्मा है 
उन सबके भीतर,जो कभी नहीं पसीजता 
जो किसी की भी कराह पर द्रवित नहीं होता 
परमात्मा की इस उत्ताल उदारता पर चकित हूँ मैं 
जिसने गड़ा है कुछ ऐसी आत्माओं को धरती पर 
जो इतने ताकतवर हैं कि अपनी ताकत का गुमान 
उन्हें कभी आदमी ही नहीं बना रहने देता 
एक अहंकारी,कपटी,स्वार्थी,लोभी और 
अनंत वासना से भरा एक अंधा हैवान !!
जिसे यह भी नहीं दिखाई देता कभी 
कि उसके कार्यों के परिणामस्वरूप जनता 
उसके बच्चों के साथ कैसा सलूक करेगी 
जिन्हें पैदा किया उसने और प्यार करता है जिन्हें वो बहुत 
उसे तो यह भी नहीं पता कि जब लौट कर आयेगा 
उसका ही किया धरा उसीपर जब उसका सबकुछ 
तब वो अश्वथामा का भविष्य पायेगा या उसकी संतानें !!
जो भी हो मगर आज वह है इतना ताकतवर और अंधा-बहरा 
कि कोई नसीहत-कोई पुकार यहाँ तक कि कोई आर्तनाद 
उसकी आत्मा या उसके परमात्मा तक पहुँच ही नहीं पाता
तो फिर आओ दोस्तों आज हम करें एक शंखनाद 
और चढ़ा दें उनके टैंक उन्हीं लोगों के शरीरों पर 
जिन्हें सौंपा है गलती से हमने अपना देश 
और मसल डालें आज उन्हें उन मच्छरों की तरह 
जो सारी रात और सारा दिन पीते रहते हैं हमारा खून 
जोर से आवाज़ दो सब मिलकर बन्दे-मातरम्.....!!!
और ख़ाक में मिला दो इन सारे खूनी हैवानों को 
जो सफेदपोशों की शक्ल में तुम्हारे आसपास,तुम्हारे बीच 
कि अब यह पवित्र तिरंगा सिर्फ और सिर्फ हमलोगों का है 
जिसे किसी चोरों-डकैतों को फहराने नहीं  दिया जा सकता.....!!!

 

1 टिप्पणियाँ:

तेजवानी गिरधर ने कहा…

उन चोरों को फहराने का ठेका आपने ही दिया है, अब आप उन्हें नहीं रोक सकते, कम से कम अभी तो, जैसे अन्ना कहते हैं कि मनमोहन सिंह किस मुंह से फहराएंगे, लो फहरा लिया, जिस भी मुंह से, यदि आपको इतना ही ऐतराज है तो मौका पडने पर तख्ता बदल दीजिए, यही संवैधानिक तरीका है, सडक पर आ कर नाटक करने को जायज नहीं ठहराया जा सकता

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