मंगलवार, 9 अगस्त 2011

डा श्याम गुप्त का पद........हे घन....

हे घन बरसो बन कर प्यार |
प्राण सुधा बन सरसे तन मन, जीवन हो रस सार |
नैन-नैन में  रस रंग बरसे,  सप्तम सुर झंकार |
मन-मन हरषे  जन जन झूमे ,  झूम उठे संसार |
प्रीति की वंशी बजे, बसे जग राधा कान्ह का प्यार |
प्रीति बसे मन, सब जग अपना प्रीति के रंग हज़ार |
प्रीति  के दीप जलाए चलो नर सब जग हो उजियार |
प्रीति किये से प्रीति मिले जग, मिले सकल सुखसार |
श्याम' जो प्रभु की प्रीति बसे मन, मिले ब्रह्म साकार ||

2 टिप्पणियाँ:

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

यही प्रीति अगर मन में बस जाए तो मन में सबके लिए प्रेम रहेगा फिर काहे का बैर होगा...
बहुत अच्छी....

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद वीणा जी.....

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