हे घन बरसो बन कर प्यार |
प्राण सुधा बन सरसे तन मन, जीवन हो रस सार |
नैन-नैन में रस रंग बरसे, सप्तम सुर झंकार |
मन-मन हरषे जन जन झूमे , झूम उठे संसार |
प्रीति की वंशी बजे, बसे जग राधा कान्ह का प्यार |
प्रीति बसे मन, सब जग अपना प्रीति के रंग हज़ार |
प्रीति के दीप जलाए चलो नर सब जग हो उजियार |
प्रीति किये से प्रीति मिले जग, मिले सकल सुखसार |
श्याम' जो प्रभु की प्रीति बसे मन, मिले ब्रह्म साकार ||
2 टिप्पणियाँ:
यही प्रीति अगर मन में बस जाए तो मन में सबके लिए प्रेम रहेगा फिर काहे का बैर होगा...
बहुत अच्छी....
धन्यवाद वीणा जी.....
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