मंगलवार, 30 अगस्त 2011

प्रेम काव्य-. षष्ठ सुमनान्जलि--रस श्रृंगार--भाग (ख)-ऋतु शृंगार गीत-५ --डा श्याम गुप्त

प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....खंड ख -ऋतु शृंगार-- के इस खंड में विभिन्न ऋतुओं से सम्बंधित ..बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, कज़रारे बादल, हे घन !, शरद, हेमंत एवं शिशिर आदि ८ गीत प्रस्तुत किये जायेंगे | प्रस्तुत है  पंचम गीत ..हे घन !...
 
झूम  झूम कर बरसो हे घन !
बिजुरी बन् कर गरजो हे घन !

प्रेयसि  काँप उठे जब थर थर ,
बाहों में आजाये डर कर |
प्यास बुझे जियरा की हे घन,
सुरभित हो जाए यह तन-मन ||

गली गली अम्बर घन गरजे,
बाहों  में प्रियतम रस सरसे |
जब जब तू बिजुरी चमकाए,
प्रिय सीने से लग लग जाए |

तुम श्यामल तन,हे श्यामल घन !
बरसो गरजो आँगन आँगन |
हर प्रेमी को प्रिय मिल जाए ,
हियर से हियरा मिल जाए |

प्यास मिटे तन मन की हे घन! 
झूम झूम कर बरसो हे घन !


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