बुधवार, 24 अगस्त 2011

प्रेम काव्य-. षष्ठ सुमनान्जलि--रस श्रृंगार--भाग (ख)-ऋतु शृंगार गीत-४ --डा श्याम गुप्त



              प्रेम   -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....खंड ख -ऋतु शृंगार-- के इस खंड में विभिन्न ऋतुओं से सम्बंधित ..बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, कज़रारे बादल, हे घन !, शरद, हेमंत एवं शिशिर आदि ८ गीत प्रस्तुत किये जायेंगे | प्रस्तुत है  चतुर्थ  गीत --कज़रारे बादल ...
 
उमड़घुमड़ कर बादल आये |
कजरारे घन नभ पर छाये |
प्रिय की विरह तपन से जैसे,
आंसू बादल बन् नभ छाये |
           उमड़ घुमड़ कर बादल आये ||

जब कूलों के बन्ध तोडकर ,
नदिया गहर गहर गहराए |
मैं समझूं प्रिय विरह पीर रत,
खड़ी किनारे अश्रु बहाए |
          कजरारे बादल नभ छाये ||

भरी दोपहरी जब लू छलकी,
प्रियतम की निश्वांस निकलती |
तप्त उसांसों से बिरहन  की ,
धरती  का कण कण तप जाए |
            बादल आंसू बन् नभ छाये ||

बागों में शबनम के मोती,
पत्ती पत्ती कलि-दल छाये|
प्रिय की बिरह-पीर से विगलित,
प्रकृति  सुन्दरी अश्रु बहाए |
             कजरारे बादल नभ छाये|
             उमड़ घुमड़ कर बादल आये ||


           
 


 
 

2 टिप्पणियाँ:

rubi sinha ने कहा…

ati sundar

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद रूबी जी....

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