प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....खंड ख -ऋतु शृंगार-- के इस खंड में विभिन्न ऋतुओं से सम्बंधित ..बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, कज़रारे बादल, हे घन !, शरद, हेमंत एवं शिशिर आदि ८ गीत प्रस्तुत किये जायेंगे | प्रस्तुत है चतुर्थ गीत --कज़रारे बादल ...
उमड़घुमड़ कर बादल आये |
कजरारे घन नभ पर छाये |
प्रिय की विरह तपन से जैसे,
आंसू बादल बन् नभ छाये |
उमड़ घुमड़ कर बादल आये ||
जब कूलों के बन्ध तोडकर ,
नदिया गहर गहर गहराए |
खड़ी किनारे अश्रु बहाए |
कजरारे बादल नभ छाये ||भरी दोपहरी जब लू छलकी,
धरती का कण कण तप जाए |
बादल आंसू बन् नभ छाये ||
बागों में शबनम के मोती,
पत्ती पत्ती कलि-दल छाये|
प्रिय की बिरह-पीर से विगलित,
प्रकृति सुन्दरी अश्रु बहाए |
कजरारे बादल नभ छाये|
उमड़ घुमड़ कर बादल आये ||
2 टिप्पणियाँ:
ati sundar
धन्यवाद रूबी जी....
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