बृज की भूमि भई है निहाल |
आनंद-कंद प्रकट भये बृज में,विरज भये बृज ग्वाल |
आशिस देंय विष्णु ब्रह्मा शिव, मुसुकावैं गोपाल |
पुरजन परिजन हरख मनावें, जनमु लियो नंदलाल |
बाजहिं, ढोल, मृदंग ,मंजीरा, नाचहिं बृज के बाल |
सुर दुरलभ छवि निरखि-निरखि छकि श्याम' भये हैंनिहाल ||
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