आरक्षण का इजाद तब हुआ था जब देश आज़ाद हुआ था, देश की पिछड़ी जातियों को आगे लाने के लिए उनको आरक्षण दिया गया था. ताकि वे भी आगे आगे आके देश के विकास में सहायक हों. दिन , महीने, साल, और दसक बीत गए पिछड़ी जातियां आज भी पिछड़ी हैं , पर पिछड़ी जातियों पे राजनीती करने वाले कहा के कहा पहुँच गए. सबसे ज्वलंत उदाहरण मायावती है. मायावती इतने आगे आयीं की अपना खुद का मंदिर ही बनवाने पे अमादा हो गयीं. कालांतर में आरक्षण, वोट बैंक का एक हथियार बन गया, जिसे कोई भी राजनितिक दल नहीं खोना चाहता है.
बुधवार, 10 अगस्त 2011
मनु सृजन!!!: आरक्षण
8/10/2011 04:28:00 am
Manoranjan Manu Shrivastav
2 comments
पर इस आरक्षण के आग में कई अन्य लोग भी झुलस रहे हैं. मसलन कोई सामान्य विद्यार्थी अस्सी मार्क्स लाके भी नौकरी का हक़दार नहीं है, और कोई साठ मार्क्स लाके भी नौकरी का अधिकारी है. आरक्षण जाती के नहीं , किसी को भी उसकी माली हैसियत के आधार पे देना चाहिए. जातिगत आधार पे लोगो को लाभ देने का ही दुसपरिणाम है की कई लोग फर्जी जाती प्रमाण पत्र बना के अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं.
आरक्षण तो होना ही नहीं चाहिए !
कहावत है की, सन १९२३ में जब तुर्की आज़ाद हुआ था तो उसके प्रथम रास्त्रपति,मुस्तफा कमल पासा, ने अपने मंत्रियो से पूछा था की पिछड़ी जातियों को सामान्य जाती के बराबर लाने में कितना वक़्त लगेगा. मंत्रियो ने जबाब दिया - "कम से कम दस साल ". इसपे मुस्तफा कमल पासा ने कहा - "समझ लो वो दस साल आज खत्म हो गया."
और ये घटना भारत के आज़ाद होने के २४ साल पहले की है.
2 टिप्पणियाँ:
तुर्की का उपयुक्त उदाहरण दिया है आपने.
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