रविवार, 7 अगस्त 2011

प्रेम काव्य-. षष्ठ सुमनान्जलि--रस श्रृंगार--भाग (ख)-ऋतु शृंगार --डा श्याम गुप्त


   प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....खंड ख -ऋतु शृंगार-- के इस खंड में विभिन्न ऋतुओं से सम्बंधित ..बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, कज़रारे बादल, हे घन !, शरद, हेमंत एवं शिशिर आदि ८ गीत प्रस्तुत किये जायेंगे | प्रस्तुतु है प्रथम गीत....बसंत..






जब आये ऋतुराज बसंत ||

,
आशा तृष्णा प्यार जगाये 
विह्वल मन में उठे तरंग |
मन में फूले प्यार की सरसों ,
अंग अंग भर उठे उमंग |

जब आये ऋतुराज बसंत ||

अंग अंग में रस भर जाए ,
तन मन में जादू कर 
जाए 
|भोली सरल गाँव की गोरी ,
प्रेम मगन राधा बन जाए ||

कण कण में ऋतुराज समाये,
हर प्रेमी कान्हा बन जाए |
ऋषि-मुनि मन भी डोल उठें-
जब बरसे रंग रस रूप अनंत ||

जब आये ऋतुराज बसंत ||














1 टिप्पणियाँ:

Shikha Kaushik ने कहा…

savan me basant ritu ka aanand dilati aapki rachna sarahniy hai .sundar bhav -saral bhasha -shaili .aabhar

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