प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....खंड ख -ऋतु शृंगार-- के इस खंड में विभिन्न ऋतुओं से सम्बंधित ..बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, कज़रारे बादल, हे घन !, शरद, हेमंत एवं शिशिर आदि ८ गीत प्रस्तुत किये जायेंगे | प्रस्तुतु है प्रथम गीत....बसंत..।
जब आये ऋतुराज बसंत ||
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आशा तृष्णा प्यार जगाये
विह्वल मन में उठे तरंग |
मन में फूले प्यार की सरसों ,
अंग अंग भर उठे उमंग |
जब आये ऋतुराज बसंत ||
अंग अंग में रस भर जाए ,
तन मन में जादू कर जाए
|भोली सरल गाँव की गोरी ,
प्रेम मगन राधा बन जाए ||
कण कण में ऋतुराज समाये,
हर प्रेमी कान्हा बन जाए |
ऋषि-मुनि मन भी डोल उठें-
जब बरसे रंग रस रूप अनंत ||
जब आये ऋतुराज बसंत ||
अंग अंग में रस भर जाए ,
तन मन में जादू कर जाए
|भोली सरल गाँव की गोरी ,
प्रेम मगन राधा बन जाए ||
कण कण में ऋतुराज समाये,
हर प्रेमी कान्हा बन जाए |
ऋषि-मुनि मन भी डोल उठें-
जब बरसे रंग रस रूप अनंत ||
जब आये ऋतुराज बसंत ||
1 टिप्पणियाँ:
savan me basant ritu ka aanand dilati aapki rachna sarahniy hai .sundar bhav -saral bhasha -shaili .aabhar
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