8/14/2011 11:08:00 am
shyam gupta
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प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....खंड ख -ऋतु शृंगार-- के इस खंड में विभिन्न ऋतुओं से सम्बंधित ..बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, कज़रारे बादल, हे घन !, शरद, हेमंत एवं शिशिर आदि ८ गीत प्रस्तुत किये जायेंगे | प्रस्तुत है तृतीय गीत ...वर्षा.......
बादल वर्षा बिजली पानी
ये प्रकृति की प्रेम निशानी |
जब हहरा कर वर्षा आये,
गरड गरड बादल गुर्राए |
चमके बिजली वरसे पानी ,
ये प्रकृति की प्रेम कहानी |
टप टप टप टप बूँद गिरें जब,
धरती आँगन खेत मेंड पर |
हरख हरख हरखू जब गाये,
झूमे कोई प्रेम कहानी |
भीग रहे हैं खेत बाग वन,
भीग रहे मनमीत राग बन् |
सब जग में हरियाली छाई,
झर झर झर जब बरसा पानी |
कोई सखी झूलती झूले,
कोई बिरहन बिरहा गाये|
कोई याद करे मन ही मन ,
प्रेम-प्रीति की रीति पुरानी |
जिनके प्रिय मर मिटे देश पर,
खून से लिख-लिख नयी कहानी |
सजनी के आँखों के घन से,
बरसे सुख-दुःख बनकर पानी |
बदल वर्षा बिजली पानी,
ये प्रकृति की प्रेम निशानी ||
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