रविवार, 14 अगस्त 2011

प्रेम काव्य-. षष्ठ सुमनान्जलि--रस श्रृंगार--भाग (ख)-ऋतु शृंगार गीत-3 --डा श्याम गुप्त..





          प्रेम   -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....खंड ख -ऋतु शृंगार-- के इस खंड में विभिन्न ऋतुओं से सम्बंधित ..बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, कज़रारे बादल, हे घन !, शरद, हेमंत एवं शिशिर आदि ८ गीत प्रस्तुत किये जायेंगे | प्रस्तुत है  तृतीय गीत ...वर्षा.......

 

बादल वर्षा बिजली पानी 

ये प्रकृति की प्रेम निशानी |

 

जब  हहरा कर वर्षा आये,

गरड  गरड  बादल गुर्राए |

चमके बिजली वरसे पानी ,

ये प्रकृति की प्रेम कहानी |


टप टप टप टप बूँद गिरें जब,

धरती आँगन खेत मेंड पर |

हरख हरख हरखू जब गाये,

झूमे कोई प्रेम कहानी |


भीग रहे हैं खेत  बाग वन,

भीग  रहे मनमीत राग बन् |

सब जग में हरियाली छाई,

झर झर झर जब बरसा पानी |


कोई सखी झूलती झूले,

कोई बिरहन बिरहा गाये|

कोई  याद करे मन ही मन ,

प्रेम-प्रीति की रीति पुरानी |


जिनके प्रिय मर मिटे देश पर,

खून से लिख-लिख नयी कहानी |

सजनी के आँखों के घन से,

बरसे  सुख-दुःख बनकर पानी |


बदल वर्षा बिजली पानी,

ये प्रकृति की प्रेम निशानी ||







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