''एक हल्की बात कर देती है किरदार तार-तार !''
शनिवार, 9 जुलाई 2011
'एक हल्की बात कर देती है किरदार तार-तार !''
7/09/2011 03:45:00 pm
शिखा कौशिक
12 comments
ब्लॉग जगत अपने मूल स्वरुप में बुद्धिजीवियों का समूह है .ब्लॉग जगत में ऐसी हल्की बात की उम्मीद कोई भी सभ्य-सुशिक्षित ब्लोगर नहीं कर सकता है .ब्लोगर स्त्री है या पुरुष -क्या आप यह देखकर किसी के ब्लॉग पर जाते हैं ?आप ब्लॉग पर पोस्ट की गयी रचना-आलेख पर ध्यान देते हैं या प्रोफाइल में चिपकी ब्लोगर की फोटो पर ? मेरा मानना है कि कोई भी सभ्य ब्लोगर सिर्फ पहचान के लिए प्रोफाइल फोटो पर एक नज़र डाल लेता है .ऐसे में यदि कोई आपको बार-बार यह सलाह दे कि आप ब्लॉग पर अपने प्रोफाइल में ''अच्छी फोटो ''लगायें इससे पाठकों की संख्या बढती है तो इसे आप क्या सलाह देने वाले के दिमाग का दिवालियापन नहीं कहेंगे !
जो पाठक आपकी रचनाओं के स्थान पर आपकी फोटो पर ज्यादा ध्यान देते हैं -वे पाठक हैं ही कहाँ ?वे तो दर्शक हैं .उनके लिए तो बहुत सामग्री नेट पर अन्यत्र भी उपलब्ध है .ऐसे ब्लोगर न तो साहित्य प्रेमी कहे जा सकते हैं और न ही विशुद्ध आलोचक .वे केवल तफरी करने के लिए ब्लॉग बना कर बैठ गएँ हैं .ब्लॉग जगत में सुन्दर चेहरों को फोटो में तलाशने का उद्देश्य रखने वाले ऐसे ब्लोगर्स को यह जान लेना चाहिए कि यदि ब्लॉग को प्रसिद्द करने का यही तरीका होता तो न तो अच्छा लिखने वालों को कोई पूछता और न ही उम्रदराज ब्लोगर्स को जबकि ब्लॉग जगत में दोनों की ही महत्ता सिर चढ़ कर बोल रही है .
यदि सुन्दर फोटो लगाकर कोई ब्लॉग जगत में अपनी पाठक संख्या बढाने का ख्वाब देखता है तो यह केवल दिवास्वप्न ही है क्योंकि यदि ऐसा होता तो यहाँ भी फ़िल्मी हीरो-हिरोइन -मॉडल का बोलबाला हो चुका होता.इसके पीछे कारण यही है कि आम आदमी न तो उनकी तरह अपनी शारीरिक सुन्दरता को लेकर सचेत होता है और न ही उसके पास इन की तरह शरीर को सुन्दर-सुडोल बनाने का समय व् पैसा होता है .फिल्म-मॉडलिंग से जुड़े लोग अपने शरीर को दुकान के माल की तरह सजा-सवाँर कर रखते हैं क्योंकि यह उनके पेशे का हिस्सा है पर यहाँ ब्लॉग जगत में हम सभी का उद्देश्य मात्र अपने विचारों और भावों को अपने सामान आम लोगों तक संप्रेषित करना है व् अन्य ब्लोगर्स के विचारों से अवगत होना है .वास्तव में जो किसी को ऐसी घटिया सलाह देता है वह सबसे पहले किसी की निजता को चोट पहुंचाता है फिर सभ्यता की सीमाओं को लांघता है और इस सबके बाद वह स्वयं विचारकर देखे कि वह कितनी हल्की बात कर रहा है ! इससे उसका किरदार भी तो तार-तार हो जाता है .क्या ऐसा नहीं है ?
12 टिप्पणियाँ:
poori tarah se sahmat.
हो सकता है आपके किसी प्रसंशक ने यह ख्वाहिश की हो? मेरे साथ ऐसा ही हुआ था मेरे एक प्रसंशक ने मुझसे कहा था कि सर अपने वीडियो में अपना फोटो भी लगा दिया करें जब "यशवन्त कानेतकर" लगा सकते हैं तो आप क्यूँ नहीं?
विशेष: यशवंत कानेतकर तकनीकी की दुनिया में बहुत बड़ा नाम है|
अपने प्रशंसक की बात मानने में मुझे कोई आपत्ति नहीं हुई और उसके बाद बने हुए मेरे सभी वीडियो में मेरा फोटो भी रहता है
विचार करें
ऐसे मनचले की न दुनिया में कमी है न ब्लॉग जगत में ही ये चक्र है इससे वेवेक से निपटें ,शुभकामनायें
हाहाहहाहाहहा बहुत बढिया..
फिर तो हम जैसे लोगों को अपना ब्लाग बंद कर देना होगा।
लेकिन गंभीर बात है, इसे दिमागी दिवालियापन समझ कर भूल जाना चाहिए।
हा हा हा हा
बहुत ही खीज कर लिखा होगा आपने,
पर, कुछ हद तक वो भी भी ठीक है जिसने फोटो लगाने की मांग की है, और कुछ आप भी .
__________
वन्स मोर !
सब परेशान कोई कैसे, कोई कैसे
अपने मन की करो, दूसरे कौन होते है, कहने वाले,
फ़ोटो व्यक्तित्व की पहचान होती है। आदमी केवल शब्दों से ही प्रभाव ग्रहण नहीं करता वरन कहने वाले का व्यक्तित्व भी प्रभावित करता है। आम तौर पर हम अपने घरों में केवल लुंगी बनियान या किसी अन्य सुविधाजनक घरेलू वस्त्रों में भी रहते हैं लेकिन जब किसी मंच से सभा को संबोधित करने के लिए जाना होता है तो वस्त्र दूसरे पहनकर जाते हैं।
हम उस समय यह क्यों नहीं सोचते कि लोगों को हमारे विचार सुनने हैं या हमारे कपड़ों का डिजायन देखना है ?
इसी प्रकार ब्लॉग जगत की भी एक सभ्यता है कि या तो फ़ोटो सिरे से ही न हो या फिर कोई प्रतीक फ़ोटो हो या फिर हो तो साफ सा फ़ोटो हो। अगर फ़ोटो साफ़ न हो तो जिसका फ़ोटो होता है वह भूत या भूतनी सा नज़र आता है और देखने वालों को उलझन सी होती है कि इतना पढ़ लिखकर भी इन्हें फ़ोटो खिंचाने तक का सलीका नहीं है।
जिसने भी आपको सलाह दी है आपके भले के लिए दी है।
बाकी आपकी मर्जी है कि आप उसकी सलाह को किस एंगल से लेती हैं।
भली बात को बुराई के एंगल से लेना दूसरे को अकारण ही मानसिक कष्ट पहुंचाना है और जो लोग इस आदत के शिकार हो जाते हैं, उन्हें फिर कोई और सही सलाह कैसे दे सकता है ?
यही वजह है कि ब्लॉग जगत में लोग दिखावटी और नकली कमेंट देते हैं ताकि किसी को कोई शिकायत ही पैदा न हो।
आपके फ़ोटो वास्तव में ही धुंधले हैं और इन्हें जो भी अपने ब्लॉग पर लगाएगा, फूहड़ समझा जाएगा।
अपने शरीर को फिल्म कलाकारों की तरह बनाने की जरूरत नहीं है बल्कि आप जैसी भी हैं वैसी ही सूरत का अच्छे रिज़ॉल्यूशन का फ़ोटो काफी है।
इस संबंध में आप योगेन्द्र जी के अनुभव से भी लाभ उठा सकती हैं।
मुझे डर है कि कहीं आपकी नज़र में मेरा भी किरदार तार तार न हो जाए तो भी आपको बहनवत सुझाव दे रहा हूं।
शुभकामनाएं !
कंटेंट मायने रखता है, फोटो नहीं,
फोटो देख के कोई पढ़ने नहीं आता है, अन्यथा कालिदास के ग्रंथो को कोई नहीं पूछता.
jo rai bhai weel wisher de rahe hai. Ye baat un par kyo nahi laagu hoti.. Na naam our na pic... Ab kya kahu...
mahendra ji ne hi sari bat kah di hai aur jyada kahne ki zaroorat nahi .
@ महेंद्र जी ! कृपया ध्यान से पढ़े और फिर आपत्ति करें .
हमने कहा है कि
< या तो फ़ोटो सिरे से ही न हो या फिर कोई प्रतीक फ़ोटो हो या फिर हो तो साफ सा फ़ोटो हो।>
शिखा जी लेख़ कुछ समझ मैं नहीं आया. यह सत्य है की किसी भी ब्लॉगर का लेख़ अहमियत रखता है ना की उसकी तस्वीर. मैं जब ब्लॉगजगत में आया था तो मैंने अमन का पैग़ाम नाम लिख के तस्वीर की जगह लगा रखा था लेकिन ना जाने कितने ब्लॉगर ने बार बार यह कहा की तस्वीर आप अपनी लगा लें. यकीनन उनकी बात अनुचित थी लेकिन मैंने सकारात्मक सोंच रखते हुए अपनी तस्वीर लगा दी. और आज उनकी शिकायत ख़त्म है.
महिला ब्लॉगर के लिए वो चाहे तो अपनी तस्वीर ही ना लगाये ,इसकी आवश्यकता मैं नहीं समझता. तस्वीर यदि कोई महिला लगती है तो वो वैसी तस्वीर लगा सकती है जिन कपड़ों मैं वो समाज मैं बाहर आती जाती है. क्यों की जिस हाल मैं वो सबके सामने बाज़ार मैं ,दफ्तर मैं जा सकती है वैसी ही अपने ब्लॉग मैं भी लगा सकती है.
मान लेकिन यदि कोई औरत मुस्लिम है तो हिजाब के साथ वो बाहर जाती है और वैसी ही तस्वीर लगा सकती है.
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