प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है...
प्रथम भाग (क)- संयोग श्रृंगार में --पाती, क्या कह दिया , मान सको तो, मैं चाँद तुझे कैसे....., प्रिय तुमने किया श्रृंगार , पायल, प्रियतम जब इस द्वारे आये, सखि ! कैसे व मांग सिंदूरी ...आदि ९ रचनाएँ प्रस्तुत की जायगीं | प्रस्तुत है सप्तम गीत---प्रियतम जब इस द्वारे आये.....
प्रियतम जब इस द्वारे आये |
दीप जले मन, तन हरषाये ||
भीनी भीनी प्यार की महक,
मन साँसों में भर भर जाए |
अंग अंग में खिली चांदनी,
मन राधा बन् कर मुस्काए | ....प्रियतम जब.......||
नैन चदरिया राह बिछाये,
दीप जलाए द्वार खड़ी थी |
उपालंभ की गठरी बाँधे,
मैं तो कर मनुहार खड़ी थी |
प्रियतम से जब हुआ सामना,
मन पिघला नवनीत होगया |
झूले बाहों के झूले जब,
उपालंभ संगीत होगया |
जो मनुहार किये बैठी थी ,
आँसू बन् प्रिय गीत होगया |
मौन मौन मन बात होगई,
बोल मुखर फिर कब हो पाए | ---प्रियतम जब......||
बाहों में भरकर इठलाये ,
प्रियतम जब इस द्वारे आये |
तन पिघला नवनीत होगया,
मन राधा बनकर मुस्काए |
प्रियतम जब इस द्वारे आये ||
1 टिप्पणियाँ:
बहुत ही सार्थक कविता। बधाई।
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