शनिवार, 9 जुलाई 2011

गधा गुलकंद खा रहा है


ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिला
घर लौटना ज़रूरी था
कुलियों से लेकर टी टी तक की
मनुहार करता रहा
ज़रूरी काम की दुहाई देता रहा
गधे को बाप बनाने में
गुरेज़ ना रहा
सब को नोट दिखाता रहा
रिश्वत देकर
सीट पाने की ख्वाइश करता रहा
सौ का नोट
इमानदार टी टी को दिखाया
डांट का जोरदार तमाचा खाया
सब को बेईमान समझता है
कह कर टी टी गुर्राया
जेल में बंद करवा दूंगा की
धमकी से हडकाया
पैसे का नशा काफूर हो गया
हाथ जोड़ माफी माँगता रहा
रहम खा कर टी टी ने
बिना पैसे के सीट दे कर 
उपकृत किया
दस बार उसे धन्यवाद दिया
गाडी खुद के शहर पहुँची
उतरते ही पैसे और घमंड का
हैवान लौट आया
गली का कुत्ता घर में शेर हो गया  
कुली को चिल्ला कर बुलाया
बाहर निकला
ड्राइवर नज़र नहीं आया
उल्लू का पट्ठा कह कर याद किया
उसके दिखते ही
गालियों की बौछार से
उसका स्वागत किया
कार में बैठते ही
खुद को महाराजा समझने लगा
फ़ोन पर ही दोस्तों पर रूतबा
गांठने लगा
एक मिनिट में रिजर्वेशन मिला
सब को डींगें मारता रहा
घर पहुंचा ,
नौकर ने दरवाज़ा खोलने में
थोड़ा समय लगाया
उसे माँ,बहन को याद कराया
सुन्दर पत्नी ने पूछ लिया,
ट्रेन जल्दी आ गयी
तुम तो खुश हो रही होगी
भगवान् से प्रार्थना कर रही होगी
लौट कर नहीं आऊँ
कह कर प्यार का इज़हार किया
छोटे बेटे ने पूछ लिया
पापा मेरे लिए क्या लाये
जवाब में गुर्राया
तेरा  सर लाया
आते ही दिमाग खा रहा है
पैदा तो हो गया
सब्र भगवान् के यहाँ छोड़ आया 
नौकर सब सुन रहा था 
मन ही मन मुस्करा रहा था
खुद से ही कह रहा था
भगवान् के यहाँ भी अंधेर है
 

गधा गुलकंद खा रहा है  
कहावत का अर्थ
साफ़ साफ़ समझ
आ रहा है
08-07-2011
1155-39-07-11

1 टिप्पणियाँ:

दिवस ने कहा…

अरे वाह डॉ साहब, क्या व्यंग ओढ़ी कविता है...सच में यह तो आजके एक तथाकथित आधुनिक मानव का चित्र है...

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