शनिवार, 9 जुलाई 2011

क्या यही प्यार है-

 क्या यही प्यार है-

   ''न पीने का सलीका न पिलाने का सऊर ,
   ऐसे ही लोग चले आये हैं मयखाने में.''
कवि गोपाल दास ''नीरज''की या पंक्तियाँ आजकल के कथित प्रेमी-प्रेमिकाओं पर शत-प्रतिशत खरी उतरती हैं .भले ही कोई मुझसे सहमत हो न हो पर अमर उजाला के आज के मुख्य पृष्ठ पर  छाये एक समाचार ''दुल्हन उठाने आया एम्.एल.सी.का बेटा ''पढ़कर मैं यही कहूँगी.
     समाचार के अनुसार ''बसपा एम्.एल.सी. एवं उत्तराखंड अध्यक्ष मेघराज जरावरे का परिवार सरसावा में रहता है .बताया गया है कि उनका भतीजा सन्नी सरसावा के एक शर्मा परिवार की लड़की के पीछे पड़ा था .लड़की की शादी देवबंद के शिव चौक कायस्थ वाडा निवासी रिटायर्ड बैंक कर्मी नत्थुराम शर्मा के बेटे मोनू से गुरुवार को होनी थी .सन्नी के डर से   लड़की का परिवार शादी के लिए देवबंद पहुँच गया था आरोप है कि देर शाम जरावरे का बेटा अमित अपनी सहारनपुर के मिशन कम्पाऔन्द   निवासी  फ्रेंड पिंकी और तीन लड़कों के साथ शादी के मंडप में पंहुचा .उसने शराब पी रखी थी उसने ऐलान कर दिया कि दुल्हन उसके भाई की अमानत है ,वह उसे लेकर जायेगा.दुल्हन के विरोध से वहां अफरा तफरी मच गयी.
      क्या यही है आज का प्यार जो ऐसी स्थितियां अपने कथित प्यार के लिए उत्पन्न करता है .ये तो वही बात हुई -
'' हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे ''
     सभी का प्यार के लिए यही कहना है कि प्यार त्याग का दूसरा नाम है .पहली बात तो ये है कि जब दुल्हन ने उनके इस कदम का विरोध किया तो साफ बात ये है कि वह शादी खुद की मर्जी से कर रही थी और ऐसे में यदि वह  उससे प्यार करता था तो उसे  अपने प्यार के लिए अपनी भावनाओं का बलिदान करना चाहिए था किन्तु आज के समय में पुराने समय जैसे पवित्र प्यार की कल्पना तक नहीं की जा सकती .दूसरी बात आज हर आकर्षण को प्यार का नाम दे दिया जाता है और यह आकर्षण अधिकांशतया एक तरफ़ा होता है और इसका खामियाजा आये दिन लड़कियों को भुगतना पड़ता है  .कहीं बस में बैठी ,कहीं कोलेज में आई लड़की को गोली से उड़ा दिया जाता है तो कहीं लड़की के चेहरे पर तेजाब डाल उसे अभिशप्त जिंदगी जीने को मजबूर किया जाता है .एक ओर जहाँ लड़कियों के सशक्तिकरण की कोशिशें की जा रही हैं वहीँ दूसरी ओर ऐसी घटनाएँ लड़कियों व् उनके परिजनों में भय व्याप्त कर रही हैं और मैं नहीं समझती कि ये प्यार है .प्यार में भय का कोई स्थान नहीं .फिल्म मुग़ले-आज़म का लोकप्रिय गीत -
''जब प्यार किया तो डरना क्या''
     भी इसी बात का समर्थन करता है और ये घटनाएँ प्यार की मूल भावनाओं को दरकिनार करते हुए स्वार्थ की भावना को ही ऊपर दिखा रही है .साथ ही जहाँ कहीं भी किसी लड़के लड़की की बात आती है तो पुलिस प्रशासन और मीडिया तुँरंत प्रेम सम्बन्ध जोड़ देता है और बदनामी का कलंक लग जाता है लड़की के माथे पर जिसका दोष केवल इतना है कि वह लड़की है .इसलिए ऐसी घटनाएँ केवल आजकल के प्यार जो अधिकांशतया [महज आकर्षण है]पर सवालिया निशान खड़ा करती हैं.ऐसे में अंत में भी कवि गोपाल दास ''नीरज''की यही पंक्तियाँ कहूँगी -
''जिनको खुशबू की न कोई पहचान थी ,
उनके घर फूलों की डोली आ गयी .
मोमबत्ती भी जिनसे नहीं जल सकी,
उनके हाथों में अब रौशनी आ गयी.
     शालिनी कौशिक 

3 टिप्पणियाँ:

दिवस ने कहा…

सही कहा आपने, यहाँ आपसे सहमत हूँ| यह प्यार नहीं केवल जिद है...

शिखा कौशिक ने कहा…

bahut sateek bat kahi hai aapne .badhai

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

शर्मनाक घटना है।

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